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रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद : अंतिम सुनवाई के गवाह नहीं बन पाएंगे कई प्रमुख वादकारी

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अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाये जाने के 25 साल पूरे होने से एक दिन पहले आज उच्चतम न्यायालय में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की अंतिम सुनवाई हो रही है, मगर इस मामले के कई प्रमुख वादकारी इस अदालती प्रक्रिया के गवाह नहीं बन सकेंगे। मंदिर-मस्जिद विवाद सबसे पहले वर्ष 1949 में अदालत की चौखट पर पहुंचा था। उस वक्त महन्त रामचन्द, दास परमहंस ने रामलला के दर्शन और पूजन की इजाजत देने के लिये न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

विवादित स्थल से कुछ दूरी पर स्थित कोटिया इलाके में रहने वाले हाशिम अंसारी ने भी अदालत में याचिका दाखिल करके बाबरी मस्जिद में रखी मूर्तियां हटाने के आदेश देने का आग्रह किया था।  विवादित स्थल को लेकर अदालती लड़ई के दौरान भी महन्त परमहंस और अंसारी की दोस्ती नहीं टूटी। बताया जाता है कि वे पेशी पर हाजिरी के लिये एक ही रिक्शे से अदालत जाया करते थे। मगर अब ये दोनों ही उच्चतम न्यायालय में प्रकरण की अंतिम सुनवाई के साक्षी नहीं बन सकेंगे। महंत परमहंस का निधन 20 जुलाई 2003 को हुआ था, वहीं अंसारी पिछले साल जुलाई में दुनिया को अलविदा कह गये।

अयोध्या के रहने वाले मोहम्मद इदरीस का कहना है कि रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की अंतिम सुनवाई के दौरान दो प्रमुख वादकारियों महन्त परमहंस और अंसारी जरूर याद आएंगे।  अंसारी ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने विवादित स्थल पर 22 दिसम्बर 1949 की रात को मूर्तियां रखे जाने को लेकर फैजाबाद की अदालत में हिन्दू महासभा द्वारा मस्जिद पर अवैध कब्जे का वाद दायर किया था। अंसारी ही ऐसे अकेले व्यक्ति थे जो ना सिर्फ वर्ष 1949 में बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रखे जाने के गवाह थे, बल्कि उन्होंने विवादित स्थल से जुड़ तमाम घटनाक्रम को खुद देखा था। इनमें विवादित स्थल का ताला खोले जाने से लेकर छह दिसम्बर 1992 में ढांचा गिराये जाने और सितम्बर 2010 में विवादित जमीन को तीन हिस्सों में तकसीम करने का इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला भी शामिल है।

विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के नेता अशोक सिंघल को राम मंदिर आंदोलन का मुख्य शिल्पी बताया जाता है। सिंघल 1980 के दशक में मंदिर आंदोलन का पर्याय बन गये थे। वह भी देश की सर्वोच्च अदालत में अयोध्या मामले की अंतिम सुनवाई के साक्षी नहीं बन सकेंगे। उनका वर्ष 2015 में देहान्त हो चुका है।

सिंघल ने वर्ष 1985 में राम जानकी रथ यात्रा निकाली और विवादित स्थल का ताला खोलने की मांग की। फैजाबाद की अदालत द्वारा ताला खोलने के आदेश दिये जाने के बाद सिंघल ने राम मंदिर निर्माण की मुहिम शुरू की थी।

मंदिर-मस्जिद विवाद का एक और चेहरा रहे महन्त भास्कर दास भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। वह रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले के मुख्य वादकारी तथा निर्मोही अखाड़ के मुख्य पुरोहित थे। दास ने वर्ष 1959 में रामजन्मभूमि के मालिकाना हक का दावा दायर किया था।

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनरू पीठ द्वारा 30 सितम्बर 2010 को विवादित स्थल के मामले में फैसला सुनाये जाने के बाद भास्कर दास ने सम्पूर्ण रामजन्मभूमि परिसर पर मालिकाना हक का दावा उच्चतम न्यायालय में दाखिल किया था। दास का इसी साल सितम्बर में निधन हुआ है। बुधवार छह दिसंबर को बाबरी मस्जिद विध्वंस के 25 साल पूरे हो रहे हैं। अधिक लेटेस्ट खबरों के लिए यहां क्लिक करें।

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