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सेना में जेएजी पद पर भर्ती के लिए विवाहितों को अपात्र घोषित करना तर्कपूर्ण: केन्द्र ने कोर्ट से कहा

केन्द्र सरकार ने सेना में विधि अधिकारी ‘जज एडवोकेट जनरल’ (जेएजी) के पद पर नियुक्ति के लिए विवाहित लोगों को पात्रता से बाहर रखने की अपनी नीति का बुधवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में बचाव करते हुए कहा कि यह मानदंड ‘‘जनता और राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में लगायी गई तर्कपूर्ण पाबंदी है।’’ इस पाबंदी को चुनौती देने वाली याचिका के जवाब में दाखिल अतिरिक्त हलफनामे में केन्द्र सरकार ने कहा कि 21 से 27 वर्ष आयु वर्ग के कैडेट को कमिशन देने (सेना में कमीशन करने) के लिए अविवाहित होने की शर्त ‘‘सिर्फ भर्ती/नियुक्ति और कमीशन होने से पहले के प्रशिक्षण तक की अवधि के लिए सीमित है’’ और इस दौरान बहुत ज्यादा तनाव होता है और कठिन सैन्य प्रशिक्षण दिया जाता है और सफलता पूर्वक कमीशन होने से पहले विवाह पर पाबंदी लगाना अभ्यर्थियों और संगठन (सेना) दोनों के हित में है।

मुख्य न्यायाधीश सतीश चन्द्र शर्मा और न्यायमूर्ति सचिन दत्ता की पीठ ने केन्द्र के रूख पर जवाब दाखिल करने के लिए याचिकाकर्ता कुश कालरा को समय दिया है। उच्च न्यायालय ने पिछले साल केन्द्र से इस नीति के पीछे के कारणों को हलफनामा दायर करके स्पष्ट करने को कहा था और टिप्पणी की थी कि पद पर नियुक्ति के लिए आवेदन देने से विवाहित अभ्यर्थियों पर पाबंदी लगा देने का ‘‘कोई मतलब नहीं बनता है।’’ केन्द्र ने मार्च 2019 में दाखिल अपने हलफनामे में कहा था कि विवाह करने का अधिकार संविधान के जीवन के अधिकार के तहत नहीं आ सकता है और वैवाहिक स्थिति के आधार पर अभ्यर्थियों के साथ भेद-भाव नहीं किया जाता है। 

प्रशासन ने जनहित याचिका को खारिज करने का अनुरोध करते हुए कहा कि संविधान विवाह करने के अधिकार को मौलिक अधिकार नहीं मानता है। केन्द्र ने ताजा हलफनामे में कहा कि भारतीय सेना पुरुषों और महिलाओं के साथ समान व्यवहार करती है और सेना के सभी कर्मियों को प्राथमिक सैन्य प्रशिक्षण के लिए समान पात्रता है और किसी भी प्रकार के प्रवेश के लिए ‘‘अविवाहित शर्त’’ समान है। हलफनामे में आगे कहा गया है, अविवाहित कैडेट एक बार जब अपना प्रशिक्षण पूरा कर लेता है और उसे कमीशन दे दिया जाता है तो, विवाह करने या उसके आगे की ‘‘प्राकृतिक परिणाम’’ जैसे गर्भधारण पर कोई पाबंदी नहीं है और तमाम सुविधाएं भी दी जाती हैं, लेकिन प्रारंभिक सैन्य प्रशिक्षण के दौरान, जोकि कम से कम एक साल चलता है, ऐसे प्रावधान संभव नहीं हैं। 

17 जुलाई को अगली सुनवाई

जवाब में केन्द्र ने कहा है, ‘‘चूंकि गर्भधारण और प्रसव (बच्चे को जन्म देना) महिलाओं का प्राकृतिक अधिकार माना जाता है, उसे इससे वंचित नहीं किया जा सकता है। ऐसे में एहतियाती शर्तों आदि जैसे नियमों को बनाते हुए महिला अभ्यर्थियों के हितों को भी ध्यान में रखा गया है।’’ केन्द्र ने हलफनामे में कहा है, ‘‘वादी को जवाब देते हुए, पुरुष अधिकारियों के संबंध में बिना किसी पूर्वाग्रह के सम्मानपूर्वक सूचना दे रहे हैं कि प्रशिक्षण की कठोरता और सेवा के शुरूआती साल एक अधिकारी को प्रशिक्षण के दौरान विवाह करने या वैवाहिक जीवन से जुड़ी जरूरतों को पूरा करने की अनुमति नहीं दी जाती है।’’ केन्द्र ने अदालत को बताया कि प्रशिक्षण से तीन सप्ताह से ज्यादा की अनुपस्थिति की स्थिति में कैडेट का वह ‘टर्म’ खराब हो जाता है और वह जूनियर ‘टर्म’ में चला जाता है और ज्यादा समय की अनुपस्थिति होने पर उसे सेना से बाहर भी किया जा सकता है। मामले में अगली सुनवाई 17 जुलाई को होगी।