रायपुर : संविलियन पर सरकार की सहमति की घोषणा के बाद सामने आ रही नियम शर्तें शिक्षाकर्मियो में नई बेचैनी पैदा करने लगी है। सरकार ने जब संविलियन को मंज़ूरी दी तब ही यह संकेत थे कि, यह संविलियन इतना भी सरल सहज नही होने वाला, इसमें अंतर्निहित शर्तें कई ऐसी परिस्थितियाँ पैदा करेंगी कि शिक्षाकर्मी खुद सोचें कि संविलियन को स्वीकारे भी या नही स्वीकारें। हालांकि, ट्रांसफर कराने वाले शिक्षाकर्मियों की संख्या बेहद कम है। इसमें उन्हें ज्यादा नुकसान होगा,
जो नौकरी की चाह में कम प्रतिस्पर्धा वाले दूरस्थ जिलों में अप्लाई कर शिक्षाकर्मी बन गए और बाद में हाई लेवल का एप्रोच लगाकर अपने घर के पास ट्रांसफर करा लिया। सरकार ने संविलियन के विषय को लेकर जो पत्र जारी किया है, उसमें यह विकल्प भी रखा है कि, जो शिक्षाकर्मी संविलियन नही चाहते वे पंचायत कर्मी ही माने जाएँगे और वे शिक्षा विभाग के कर्मचारी नही होंगे। संविलियन को लेकर यह पत्र स्पष्ट करता है कि वरिष्ठता का आंकलन स्थानांतरण की तिथि से होगा,
इसका मतलब यह है कि, यदि कोई शिक्षाकर्मी शंकरगढ ब्लॉक में चयनित हुआ और उसने अपना स्थानांतरण अंबिकापुर ब्लॉक करा लिया तो उसकी वरिष्ठता शंकरगढ से नहीं बल्कि अंबिकापुर की पदस्थापना से गिनी जाएगी, ज़ाहिर है ऐसे कई शिक्षाकर्मी है जिन्होंने सुविधाजनक पोस्टिंग का जुगाड़ लगाया, अब वो ट्रांसफ़र शिक्षाकर्मी बनने के दो साल बाद हुआ या पाँच साल बाद वरिष्ठता की गिनती का पहला दिन शुरु होगा उनकी नई पदस्थापना से। संविलियन का यह पत्र कहता है संविदा शिक्षकों का संविलियन 2005 में हुआ था अत: उनकी वरिष्ठता 2005 की होगी।
संविलियन की शर्त में एक शर्त और अहम है, इस बात की जाँच होगी कि कितने अदालती मुक़दमे, लंबे समय से अनुपस्थिति के कितने मामले और विभागीय जांच का क्या ब्यौरा है। संविलियन में इन तथ्यों की भी अहम भुमिका रहेगी। संविलियन बड़ी मांग थी और ज़ाहिर है सरकार की बड़ी घोषणा भी, पर सरकार तो सरकार है, नियम शर्त कुछ ऐसे है कि बड़ी संख्या में लोग प्रभावित होंगे, तो ज़ाहिर है प्रभावी संख्या उनकी भी होगी जो लाभान्वित होंगे। और जो लाभान्वित होंगे वे किसी सूरत नही चाहेंगे कि नियम शर्तों में रद्दोबदल हो या नियम शर्तों में कोई विरोध हो। नतीजतन आने वाला समय निश्चित तौर पर नज़ारे से लबरेज़ रहेगा।
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