राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने कहा है कि देश का विभाजन कभी ना मिटने वाली वेदना है। उन्होंने कहा कि इसका निराकण तभी होगा, जब ये विभाजन निरस्त होगा। भारत के विभाजन में सबसे पहली बलि मानवता की ली गई। नोएडा में पुस्तक विमोचन कार्यक्रम में शिरकत करने आए भागवत ने कहा कि विभाजन कोई राजनैतिक प्रश्न नहीं है, बल्कि यह अस्तित्व का प्रश्न है। भारत के विभाजन का प्रस्ताव स्वीकार ही इसलिए किया गया, ताकि खून की नदियां ना बहें, लेकिन उसके उलट तब से अब तक कहीं ज्यादा खून बह चुका है।
वह बृहस्पतिवार को सेक्टर-12 स्थित भाऊराव देवरस सरस्वती विद्या मंदिर में जागृति प्रकाशन द्वारा प्रकाशित ग्रंथ विभाजनकालीन भारत के साक्षी जिसके लेखक कृष्णानंद सागर है, इस ग्रंथ के लोकार्पण समारोह में शिरकत करने पहुंचे थे।
खंडित भारत को अखंडित बनाना
इस दौरान उन्होंने लोगों से कहा कि खंडित भारत को अखंडित बनाना होगा यह हमारा राष्ट्रीय एवं धार्मिक कर्तव्य है। विभाजन इस्लामिक आक्रमण, अंग्रेजों के आक्रमण का नतीजा है। इसकी पृष्ठभूमि इन आक्रमणों से जुड़ी है।आक्रमणकारियों की मनोवृत्ति अलगाव एवं स्वयं को बेहतर साबित करने की रही। अंग्रेजों ने समझा कि बिना लोगों में अलगाव किए यहां राज नहीं कर सकते।
1947 की खंडित स्वतंत्रता
भारत के उत्थान में धर्म का हमेशा स्थान रहा है। 1947 की खंडित स्वतंत्रता के बाद भी अलगाव की मानसिकता से टकराव जारी है। कैसे देश टूटा उस इतिहास को पढ़ना होगा। अप्रिय हो लेकिन जो सत्य हो वही इतिहास पढ़ना जरूरी है। इतिहास को समझकर सीखकर आगे बढ़ना होगा लेकिन जब एक बार अलगाव हो गया तो अब दंगे क्यों होते हैं। हम ही सही बाकी गलत की मानसिकता विभाजनकारी। दूसरों के लिए भी वही आवश्यक मानना जो खुद को सही लगे गलत मानसिकता है। अपने प्रभुत्व का सपना देखना गलत है।
राजा सबका होता है सबकी उन्नति उसका धर्म है। 2021 है 1947 नहीं अब विभाजन संभव नहीं है। भारत विभाजन को भूलेगा नहीं, अब विभाजन का प्रयास करने वालों का नुकसान है यह मेरा आत्मविश्वास है। हिंदू समाज को संगठित होने की आवश्यकता है। हमने समझौता कर लिया इसलिए विभाजन हुआ। हमारी संस्कृति कहती है विविधता में एकता है इसलिए हिंदू यह नहीं कह सकता कि मुसलमान नहीं रहेंगे। सब मिलकर अनुशासन में रहेंगे यही हमारी संस्कृति है। अनुशासन का पालन सबको करना होगा। अशफाक उल्ला खान जैसे मुसलमान देश में हुए हैं जो जन्नत की जगह भारत में दोबारा जन्म की चाह रखते थे।
विभाजनकालीन भारत के साक्षी का लोकार्पण
कार्यक्रम में लेखक कृष्णानन्द सागर द्बारा लिखित एवं जागृति प्रकाशन द्बारा प्रकाशित पुस्तक विभाजनकालीन भारत के साक्षी का लोकार्पण मुख्य अतिथि मोहनराव भागवत ने किया। लेखक कृष्णानंद सागर ने कहा कि उनकी पुस्तक विभाजन के दौर में हुए षड्यंत्रों पर आधारित है। शम्भू नाथ श्रीवास्तव पूर्व न्याधीश प्रयाग उच्च न्यायालय ने कहा कि इतिहास को बदल कर प्रस्तुत किया गया है। विभाजन के दौर में भारी नरसंहार हुआ। जिसके लिए पाकिस्तान पर मुकदमा दायर होना चाहिए।
कृष्णानंद सागर की पुस्तक इतिहास के कई पक्षों को उजागर करेगी। कार्यक्रम के दौरान श्रीराम आरावकर महामंत्री विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान, कुमार रत्नम सदस्य सचिव भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद, सुशील कुमार जैन अध्यक्ष भाऊराव देवरस सरस्वती विद्या मंदिर, रमन चावला भाऊराव देवरस सरस्वती विद्या मंदिर, योगेश शर्मा समन्वयक जागृति प्रकाशन, दिनेश महावर, सांसद डा महेश शर्मा, नोएडा विधायक पंकज सिंह, गन्ना अनुसंधान संस्थान चेयरमैन नवाब सिंह नागर, नरेश कुच्छल, राम अवतार सिंह सहित अन्य लोग उपस्थित रहे।