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शारदा मामले में नलिनी चिदंबरम को सुप्रीम कोर्ट से राहत, ED को दंडात्मक कार्रवाई से रोका

हाई कोर्ट ने 10 जुलाई को सारदा प्रकरण से संबंधित एक मामले में नलिनी चिदंबरम के नाम प्रवर्तन निदेशालय के समन को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने शारदा चिट फंड घोटाले से संबंधित एक मामले में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम की पत्नी और वरिष्ठ अधिवक्ता नलिनी चिदंबरम के खिलाफ कोई भी दण्डात्मक कार्रवाई करने से शुक्रवार को प्रवर्तन निदेशालय को रोक दिया। न्यायमूर्ति ए के सीकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने मद्रास हाई कोर्ट के एक आदेश के खिलाफ नलिनी चिदंबरम की याचिका पर सुनवाई के दौरान प्रवर्तन निदेशालय को नोटिस भी जारी किया। साथ ही अदालत ने गिरफ्तारी से अंतरिम सुरक्षा भी बढ़ा दी।

उच्च न्यायालय ने 10 जुलाई को शारदा प्रकरण से संबंधित एक मामले में नलिनी चिदंबरम के नाम प्रवर्तन निदेशालय के समन को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी। इससे पहले, हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश की पीठ ने भी प्रवर्तन निदेशालय के समन को चुनौती देने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी।

उच्च न्यायालय ने कहा था कि धन शोधन रोकथाम कानून की धारा 50 (2) में प्राधिकारी को ऐसे किसी भी व्यक्ति को तलब करने का अधिकार है जिसकी उपस्थिति जांच के लिये जरूरी महसूस की जा रही हो। अदालत ने इस दलील को भी ठुकरा दिया था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 एक महिला को उनके निवास वाले स्थान से बाहर जांच के लिये नहीं बुलाया जा सकता।

अदालत ने कहा था कि वह दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 160 का उपयोग नहीं कर सकतीं। प्रवर्तन निदेशालय ने नलिनी चिदंबरम को अपने कोलकाता कार्यालय में पेश होने के लिये पहला समन सात सितंबर, 2016 को जारी किया था। फिर एकल न्यायाधीश के आदेश के बाद नये समन जारी किये गये थे।

आरोप है कि नलिनी चिदंबरम को अदालत और एक टेलीविजन चैनल खरीदने के सौदे के सिलसिले में कंपनी लॉ बोर्ड में पेश होने के लिये सारदा समूह ने उन्हें एक करोड़ रूपए बतौर फीस दिये थे। नलिनी चिदंबरम ने अपनी अपील में दलील दी थी कि यदि मुवक्किलों को कानूनी सलाह देने वाले वकीलों को इस तरह से समन भेजने की प्रवृत्ति को शुरू में नहीं रोका गया तो इसके परिणाम घातक हो सकते हैं।

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