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जंगलों को बचाने सब आगे आएं

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रायपुर : मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने राज्य के हरे-भरे जंगलों को आग से बचाने के लिए सभी लोगों से सक्रिय सहयोग की अपील की है। बेशकीमती वन सम्पदा की दृष्टि से छत्तीसगढ़ काफी सम्पन्न है। राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 44 प्रतिशत अर्थात 59 हजार 772 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा वनों का है।

डॉ. सिंह ने कहा-इस प्राकृतिक सम्पन्नता को बचाए रखना और उसके विकास के लिए निरंतर प्रयास करना हम सबकी सामाजिक और राष्ट्रीय जिम्मेदारी है। पर्यावरण संरक्षण के लिए भी यह बहुत आवश्यक है। उन्होंने कहा-वनों को आग से बचाना इसलिए भी बहुत जरूरी है कि ये वन हमारे लाखों वनवासी परिवारों की आजीविका और अतिरिक्त आमदनी का एक बहुत बड़ा माध्यम है।

तेन्दूपत्ता, साल बीज, महुआ, लाख, चिरौंजी आदि लघु वनोपजों के संग्रहण के जरिए हमारे वनवासी भाई-बहनों को मौसमी रोजगार मिलता है । मुख्यमंत्री ने कहा कि गर्मी के इस मौसम में वन क्षेत्रों में कई कारणों से आग लगने और फैलने की अधिक आशंका रहती है। कई बार वनों से गुजरने वाले लोग वहां खाना बनाते हैं और जलती हुई लकड़ी को बिना बुझाए छोड़ देते हैं।

इसी तरह धूम्रपान करने वाले कई राहगीर जलती हुई बीड़ी या सिगरेट को वृक्षों के आसपास लापरवाही से फेक देते हैं। इसके फलस्वरूप वनों में आग फैल जाती है और हमारी बहुमूल्य वन सम्पदा को गंभीर नुकसान पहुंचता है। साल, सागौन और मिश्रित प्रजातियों के मूल्यवान वृक्षों तथा बहुमूल्य जड़ी-बूटियों का अनमोल खजाना छत्तीसगढ़ के वनों में है।

मुख्यमंत्री ने कहा-वनों में आग लगने पर बहुमूल्य वन सम्पदा के साथ-साथ वन्य प्राणियों के जीवन पर भी संकट आ जाता है और प्रदेश के जंगलों की नैसर्गिक जैव विविधता को नुकसान पहुंचता है। राज्य सरकार ने संयुक्त वन प्रबंधन योजना के तहत प्रदेश के 19 हजार 720 गांवों में से वन क्षेत्रों की सीमा के पांच किलोमीटर के भीतर स्थित लगभग ग्यारह हजार 185 गांवों में ग्रामीणों की भागीदारी से सात हजार 887 वन प्रबंधन समितियों का गठन किया है।

इन समितियों में 27 लाख 63 हजार सदस्य हैं। इन समितियों को प्रदेश के कुल वन क्षेत्रफल में से 55 प्रतिशत अर्थात 33 हजार 190 वर्ग किलोमीटर के वनों की रक्षा का दायित्व सौंपा गया है। इनमें महिलाओं की संख्या 14 लाख से अधिक है। वनों की सुरक्षा के एवज में जंगलों से मिलने वाली लकड़ी और बांस के उत्पादन पर वन विभाग को जो राशि मिलती है, उसमें से 15 प्रतिशत हिस्सा वन प्रबंधन समितियों को दिया जाता है।

विगत 14 वर्ष में इन समितियों को गांवों के विकास के लिए 301 करोड़ रूपए का लाभांश दिया गया। इसके अलावा 901 लघु वनोपज सहकारी समितियों में भी लाखों वनवासी सदस्य हैं, जिनके द्वारा तेन्दूपत्ता और अन्य लघु वनोपजों का संग्रहण किया जाता है।

मुख्यमंत्री ने वन प्रबंधन समितियों और लघु वनोपज समितियों के सदस्यों से भी वनों की रक्षा के लिए हमेशा सजग रहने और अपने दायित्वों का निर्वहन करने की अपील की है। उन्होंने इन समितियों से ग्रामीणों के बीच वनों को आग से बचाने के लिए और भी ज्यादा जागरूकता लाने का भी आव्हान किया है।

मुख्यमंत्री ने वन विभाग के सभी मैदानी अधिकारियों और कर्मचारियों से भी कहा है कि वे संयुक्त वन प्रबंधन समितियों और वनोपज समितियों के साथ निरंतर सम्पर्क और समन्वय बनाकर वनों को आग बचाने के लिए गंभीरता से काम करें।

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