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SC और ST को अपने हितों को विकसित करने निर्देश मिलते है, समाज को अभी बहुत कुछ करना बाकी है : कोविंद

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बृहस्पतिवार को कहा कि संवैधानिक प्रावधान के तहत सरकार को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के शैक्षिक और आर्थिक हितों को विकसित करने के लिए निर्देश मिलता है, लेकिन देश और समाज को अभी बहुत कुछ करना बाकी है।

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने बृहस्पतिवार को कहा कि संवैधानिक प्रावधान के तहत सरकार को अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के शैक्षिक और आर्थिक हितों को विकसित करने के लिए निर्देश मिलता है, लेकिन देश और समाज को अभी बहुत कुछ करना बाकी है। एससी और एसटी वर्ग के विधायकों और सांसदों के मंच तथा ‘डॉ. आंबेडकर चैंबर ऑफ कॉमर्स’ द्वारा आयोजित पांचवें अंतरराष्ट्रीय आंबेडकर सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए राष्ट्रपति ने यह बात कही।
सरकार की पहल के बारे में जागरूक करें
कोविंद ने कहा कि वंचित वर्गों के कई लोग अपने अधिकार और कल्याण के लिए सरकार की पहल से अवगत नहीं हैं। राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इसलिए, इस मंच के सदस्यों की जिम्मेदारी है कि वे उन्हें उनके अधिकार और सरकार की पहल के बारे में जागरूक करें।’’ राष्ट्रपति ने कहा कि विकास यात्रा में पिछड़ गए अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को आगे ले जाना भी उनकी जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि हमारे संविधान में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के हितों की रक्षा के लिए कई प्रावधान किए गए हैं। 
आर्थिक हितों का विशेष ध्यान देने के साथ विकास करेगा
राष्ट्रपति ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 46 निर्देश देता है कि राज्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के शैक्षिक और आर्थिक हितों का विशेष ध्यान देने के साथ विकास करेगा। कोविंद ने कहा, ‘‘इसके अलावा इस अनुच्छेद में राज्य को उन्हें सामाजिक अन्याय और सभी प्रकार के शोषण से बचाने के लिए निर्देशित किया गया है। इन दिशानिर्देशों को लागू करने के लिए कई संस्थानों और प्रक्रियाओं को लागू किया गया है। बहुत सुधार हुआ है। लेकिन, हमारे देश और समाज द्वारा बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
समाज में नैतिक और सामाजिक चेतना का होना जरूरी
राष्ट्रपति ने कहा कि बाबासाहेब भीम राव आंबेडकर समाज की नैतिक चेतना को जगाने के पक्ष में थे। राष्ट्रपति भवन द्वारा जारी एक बयान में कोविंद के हवाले से कहा गया है, ‘‘आंबेडकर कहते थे कि अधिकारों की रक्षा केवल कानूनों से नहीं की जा सकती बल्कि समाज में नैतिक और सामाजिक चेतना का होना भी जरूरी है। उन्होंने हमेशा अहिंसक और संवैधानिक साधनों पर जोर दिया।’’

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