सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के 2016 के नोटबंदी के फैसले सेसुरक्षित रख लिया है। कोर्ट ने सभी पक्षों से 2 दिन में लिखित दलील जमा करवाने का निर्देश दिया है। गौरतलब है कि 8 नवंबर 2016 को पीएम नरेंद्र मोदी ने रात 8 बजे टीवी चैनलों के माध्यम से यह घोषणा कर दी थी कि रात 12 बजे के बाद से उस समय परिचालन में लाए जा रहे 500 और 1000 के नोटों को अमान्य करार दे दिया जाएगा।
न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने 24 नवंबर को मामले पर विस्तृत सुनवाई शुरू की। जस्टिस नज़ीर के अलावा संविधान पीठ में अन्य 4 सदस्य हैं- जस्टिस बी.आर. गवई, ए.एस. बोपन्ना, वी. रामासुब्रमण्यम और बी.वी. नागरत्न। इस दौरान जजों ने याचिकाकर्ता की तरफ से पी चिदंबरम और श्याम दीवान जैसे वरिष्ठ वकीलों को सुना।
8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा
वहीं, केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने दलीलें रखीं। रिजर्व बैंक की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयदीप गुप्ता ने बहस की। आपको बता दें, काले धन को रोकने और देश को डिजिटल अर्थव्यवस्था की ओर ले जाने के इरादे से 8 नवंबर, 2016 को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा की गई थी। यह पहली बार नहीं था जब भारत में पुराने नोटों का चलन बंद हुआ था। इससे पहले भी देश में नोटबंदी या कह लीजिए नोटबंदी हो चुकी थी और नए नोट चलन में आ गए थे।
नोटों के प्रचलन पर प्रतिबंध
ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान देश में पहली बार विमुद्रीकरण की घोषणा की गई थी। वायसराय और भारत के गवर्नर जनरल सर आर्चीबाल्ड वेवेल ने 12 जनवरी, 1946 को उच्च मुद्रा बैंक नोटों पर प्रतिबंध लगाने के लिए एक अध्यादेश का प्रस्ताव रखा। 13 दिनों के बाद यानी 26 जनवरी की रात 12 बजे से ब्रिटिश काल में जारी 500 रुपये, 1000 रुपये और 10000 रुपये के उच्च मुद्रा नोटों के प्रचलन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।