उच्चतम न्यायालय ने यातायात सेवा , इमारतों और दूसरे सार्वजनिक स्थलों में दिव्यांगों को सुरक्षित आने जाने की सुविधा मुहैया कराने के फैसले पर अमल नहीं करने को लेकर केन्द्र सरकार को आज आड़े हाथ लिया। न्यायालय ने कहा कि सरकार को कानून और अपने आदेश का पालन करना होगा।
शीर्ष अदालत ने पिछले साल 15 दिसंबर को कहा था कि संविधान में प्रत्येक नागरिक को प्रदत्त गरिमा का अधिकार निशक्तता से प्रभावित व्यक्तियों के मामले में अधिक गंभीरता से लागू होता है और यह सरकार तथा सार्वजनिक प्राधिकारियों का कर्तव्य है कि वे इस बारे में उचित मानदंड निर्धारित करें।
न्यायालय ने राज्यों द्वारा उसके आदेश पर अमल नहीं करने पर नाराजगी व्यक्त की और संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों को चेतावनी दी कि इसमें विलंब के बारे में स्पष्टीकरण देने के लिये उन्हें तलब किया जायेगा।
न्यायमूर्ति ए के सिकरी और न्यायमूर्ति अशोक भूषण की पीठ ने केन्द्र को चार सप्ताह के भीतर विस्तृत जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया जिसमें इस संबंध में अभी तक उठाये गये कदमों और न्यायालय के निर्देश पर अमल के बारे में समय सीमा की जानकारी हो।
पीठ ने कहा , ‘‘ हमने 15 दिसंबर , 2017 के फैसले में जो कुछ भी कहा , वह पहले से ही कानून में है। ऐसा कुछ भी नहीं है जिसका सृजन न्यायालय ने किया है। यह आपका (केन्द्र) कानून है और हमने तो सिर्फ इस पर अमल करने का निर्देश दिया है। यह आपका काम है। ’’
पीठ ने कहा , ‘‘ सरकार को हमें न्यायालय के निर्देशों पर अमल की समय सीमा बतानी होगी। हम सरकार नहीं चला रहे हैं। आपको निर्देशों और कानून का अनुपालन करना है। ’’
पीठ ने कहा कि एक्सेसिबल इंडिया कैंपेन ने 50 शहरों में 20 से 50 महत्वपूर्ण सरकारी इमारतों को दिव्यांगों के आने जाने के लिये पूरी तरह अनुकूल बनाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य को प्राप्त नहीं किया गया है और अभी तक सिर्फ इमारतों की पहचान तथा उनके आडिट का ही काम हुआ है।
केन्द्र की ओर से अतिरिक्त सालिसीटर जनरल पिंकी आनंद ने कहा कि न्यायालय के अनेक निर्देशों का अनुपालन किया जा चुका है और सरकार इस संबंध में न्यायालय में हलफनामा दाखिल करेगी।
याचिकाकर्ता राजीव रतूड़ी के वकील राजनल मणि ने कहा कि न्यायालय ने 11 निर्देश दिये थे लेकिन अभी सिर्फ बुनियादी काम हुआ है और अधिकांश निर्देशों पर अमल किया जाना है।
उन्होंने कहा कि असम , उत्तराखंड , त्रिपुरा , जम्मू कश्मीर , आंध्र प्रदेश और दादर नागर हवेली जैसे राज्यों ने तो अभी इमारतों की पहचान भी नहीं की है। पीठ ने असम और अन्य राज्यों तथा केन्द्र शासित प्रदेश के वकीलों को चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल कर इस संबंध में अब तक उठाये गये कदमों की जानकारी देने का निर्देश दिया। पीठ इस मामले में अब पांच सितंबर को आगे सुनवाई करेगी।