दुष्कर्म जैसे संवेदनशील मामले में पीड़िता की गोपनीयता की सुरक्षा ना करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के एक सत्र अदालत के फैसले पर अप्रसन्नता जताई। दरअसल, दुष्कर्म मामले में अदालत के फैसले के अंदर पीड़िता के नाम का उल्लेख किया गया था, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सभी अधीनस्थ अदालतों को इस प्रकार के मामलों से निपटते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि यह पूरी तरह से स्थापित है कि इस प्रकार के मामलों में पीड़िता का नाम किसी भी कार्यवाही में नहीं आना चाहिए। पीठ ने कहा,‘‘हम सत्र न्यायाधीश के फैसले पर अप्रसन्नता जताते हैं, जहां पीड़िता के नाम का उल्लेख किया गया है।’’ पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति विनीत शरण और न्यायमूर्ति एम आर शाह शामिल थे।
पीठ ने 30 जून के अपने आदेश में कहा,‘‘हमारा मानना है कि सभी अधीनस्थ अदालतों को भविष्य में इस प्रकार से मामलों से निपटने के दौरान सावधानी बरतनी चाहिए।’’ न्यायालय ने अपने आदेश में यह बात कही और दोषी की ओर से दाखिल याचिका खारिज कर दी। याचिका में बलात्कार के मामले में उसे दोषी ठहराने के छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती दी गई थी। पीठ ने कहा,‘‘मामले के तथ्य के अनुसार हम इस विशेष अवकाश याचिका पर सुनवाई नहीं करना चाहते। विशेष अनुमति याचिका खारिज की जाती है।’’
उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2019 के अपने फैसले में बलात्कार के मामले में दोषी ठहराए जाने के निचले आदेश के फैसले के खिलाफ दाखिल याचिका खारिज कर दी थी।’’ वर्ष 2001 में दर्ज मामले में महासमुद की सत्र अदालत ने व्यक्ति को दोषी करार दिया था।
हाई कोर्ट ने निचली अदालत के आदेश को बरकरार रखते हुए कहा कि पीड़िता के बयानों और साक्ष्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि यह सहमति से दैहिक संबंध बनाने का मामला नहीं है। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2018 के अपने एक आदेश में कहा था कि दुष्कर्म और यौन प्रताड़ना के पीड़तों के नाम और उनकी पहचान उजागर नहीं की जा सकती, भले ही उनकी मृत्यु हो चुकी हो।