देश में मुस्लिमों के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने तीन तलाक पर बड़ा फैसला लिया, जिसके बाद मुस्लिम समुदाय में काफी मिली-जुली प्रतिक्रिया सामने आई थी। तो वहीं, अब इसके बाद एक और मामला देश की सर्वोच्च अदालत, उच्चतम न्यायालय के समक्ष आया है। मुस्लिम पुरुषों को तलाक का एकतरफा अधिकार देने वाले तलाक-ए-हसन और दूसरे प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका को जल्द सुनवाई के लिए लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है।
मामले को लेकर कही ये बात
वहीं, पति की तरफ से पहला तलाक पा चुकी गाज़ियाबाद की बेनज़ीर हिना की याचिका जल्द सुनने की मांग पर चीफ जस्टिस ने कहा कि मामले को तुरंत सुनवाई के लिए लगाना जरूरी नहीं है। इस तरह के दूसरे लंबित मामलों के साथ इसे बाद में सुना जाएगा।
याचिकाकर्ता ने की है ये मांग
याचिकाकर्ता के वकील अश्विनी उपाध्याय ने कहा है कि बेनज़ीर को 19 अप्रैल को पहला तलाक मिल चुका है। ऐसे में जल्द सुनवाई ज़रूरी है। अगर 20 मई तक मामला सुनवाई के लिए नहीं लगा तो वह सुप्रीम कोर्ट की अवकाशकालीन बेंच के सामने सुनवाई की मांग रखेंगे। बेनज़ीर की याचिका में यह मांग भी की गई है कि मुस्लिम लड़कियों को तलाक के मामले में बाकी लड़कियों जैसे अधिकार मिलने चाहिए।
ये है मसला, शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया गया
बता दें कि 22 अगस्त 2017 को सुप्रीम कोर्ट ने एक साथ 3 तलाक बोल कर शादी रद्द करने को असंवैधानिक करार दिया था। तलाक-ए-बिद्दत कही जाने वाली इस व्यवस्था को लेकर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं का भी मानना था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है। कोर्ट के फैसले के बाद सरकार एक साथ 3 तलाक बोलने को अपराध घोषित करने वाला कानून भी बना चुकी है। लेकिन तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन जैसी व्यवस्थाएं अब भी बरकरार हैं। इनके तहत पति 1-1 महीने के अंतर पर 3 बार लिखित या मौखिक रूप से तलाक बोल कर शादी रद्द कर सकता है।