सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को संविधान से ‘इंडिया’ शब्द हटाने की मांग वाली याचिका में दखल देने से इनकार कर दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने याचिकाकर्ता से अपनी बात सरकार के समक्ष रखने को कहा। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति हृषिकेश रॉय की खंडपीठ ने याचिकाकर्ता नम: की ओर से पेश वकील अश्विन वैश्य की दलीलें सुनने के बाद कहा कि याचिकाकर्ता अपना ज्ञापन सरकार को दें।
याचिकाकर्ता ने कोर्ट में दी थी कि संविधान के अनुच्छेद 1 में संशोधन कर इंडिया शब्द हटा दिया जाए। अभी अनुच्छेद 1 कहता है कि भारत अर्थात इंडिया राज्यों का संघ होगा। इसकी जगह संशोधन करके इंडिया शब्द हटा दिया जाए और भारत या हिन्दुस्तान कर दिया जाए। देश को मूल और प्रमाणिक नाम भारत से ही मान्यता दी जानी चाहिए।
याचिकाकर्ता ने दलील देते हुए कहा, इंडिया नाम ग्रीक शब्द ‘इंडिका’ से निकला है। इस पर सीजेआई ने कहा कि याचिकाकर्ता यहां क्यों आये हैं? संविधान में देश का नाम भारत है ही। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे संविधान की शुरुआत में ही लिखा गया है, ‘इंडिया दैट इज भारत’ (इंडिया जो भारत है)। आपको क्या समस्या है?’’
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि सदियों से भारत और भारत माता की जय बोला जाता रहा है। इस पर न्यायमूर्ति बोबडे ने कहा कि याचिकाकर्ता अपना ज्ञापन गृह मंत्रालय को दें। याचिकाकर्ता ने ‘इंडिया’ शब्द को औपनिवेशिक और गुलामी का प्रतीक बताते हुए संविधान के अनुच्छेद एक में संशोधन का केंद्र को निर्देश देने का अनुरोध किया था।
याचिकाकर्ता ने यह याचिका वकील राजकिशोर चौधरी के माध्यम से दायर की थी। याचिका में कहा गया था कि इंडिया की जगह भारत नामकरण से देश में एक राष्ट्रीय भावना पैदा होगी। याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में 15 नवंबर, 1948 को हुए संविधान के मसौदे का भी उल्लेख किया था, जिसमें संविधान के प्रारूप एक के अनुच्छेद एक पर बहस करते हुए एम। अनंतशयनम अय्यंगर और सेठ गोविन्द दास ने ‘इंडिया’ की जगह ‘भारत, भारतवर्ष, हिंदुस्तान’ नामों को अपनाने की वकालत की थी।