राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली का शाहीन बाग नागरिकता संशोधित कानून (सीएए) के विरोध का केंद्र बनकर उभरा था। शाहीन बाग में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के मद्देनजर दिशा-निर्देश और विरोध के अधिकार की मांग करने वाली कई याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सुनवाई की। कोर्ट ने इस मामले में अपना आदेश सुरक्षित रख लिया है।
मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोगों के आने-जाने के अधिकार के साथ विरोध के अधिकार को संतुलित होना चाहिए। जस्टिस एस के कौल ने कहा कि विरोध करने का अधिकार संपूर्ण नहीं है, लेकिन फिर भी एक अधिकार है। एक सार्वभौमिक नीति नहीं हो सकती क्योंकि हर बार स्थिति और तथ्य अलग होते हैं। संसदीय लोकतंत्र में, हमेशा बहस का एक अवसर होता है। एकमात्र मुद्दा यह है कि इसे कैसे संतुलित किया जाए।
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वकील महमूद प्राचा ने कहा कि इस पर एक सार्वभौमिक नीति लाई जानी चाहिए। इस पर कोर्ट ने कहा कि देखते हैं कि किस तरह से इसमें संतुलन कायम हो सकता है। शाहीन बाग विरोध प्रदर्शन महीनों तक शांतिपूर्ण था, और आंदोलन को रोकने के लिए राज्य मशीनरी का दुरुपयोग किया गया था।
केंद्र की ओर से पेश वकील तुषार मेहता ने कहा कि नागरिक अधिकार उचित रोक के साथ हैं और इस पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी है जो दिल्ली के जंतर-मंतर को लेकर है। याचिका में सुप्रीम कोर्ट से सड़क जाम कर होने वाले धरना प्रदर्शन को लेकर गाइडलाइन बनाने की मांग की गई है। इस दौरान एसजी तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि लोगों को हटाया जा चुका है। तो अब इस मामले में सुनवाई होना जरुरी नहीं हैं।