सुप्रीम कोर्ट ने कोरोना संकट के बीच जम्मू-कश्मीर में 4जी इंटरनेट सेवाएं बहाल करने के लिए दायर याचिका पर मंगलवार को सुनवाई की। इस मामले में कोर्ट ने केंद्र और जम्मू-कश्मीर प्रशासन से 27 अप्रैल तक जवाब मांगा है। सुनवाई में कोर्ट को बताया गया कि केंद्र शासित प्रदेश में 4जी सेवाएं उपलब्ध नहीं होने की वजह से मेडिकल सुविधा और शिक्षा सेवाओं सहित अनेक क्षेत्र प्रभावित हो रहे हैं।
न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्उी और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल और जम्मू-कश्मीर प्रशासन की ओर से पेश सालिसीटर जनरल तुषार मेहता को वस्तुस्थिति का आकलन करने के बाद 27 अप्रैल तक अपने हलफनामे दाखिल करने के निर्देश दिए।
इससे पहले, केंद्र ने इस संबंध में ‘फाउण्डेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स’ की याचिका का विरोध किया और कहा कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है और जम्मू-कश्मीर में अभी भी आतंकवादी गंभीर खतरा बने हुए हैं। केंद्र ने हाल ही में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में मारे गए एक आतंकवादी के जनाजे में सैकड़ों लोगों के एकत्र होने की घटना की ओर कोर्ट का ध्यान आकर्षित किया।
इस मामले की सुनवाई शुरू होते ही पीठ ने संबंधित पक्षों से 4जी सेवाओं की स्थिति से संबंधित मामले के बारे में जानकारी मांगी जिसका जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था। याचिकाकर्ता संगठन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हुजेफा अहमदी ने कहा कि उनकी याचिका सिर्फ जम्मू-कश्मीर में 4जी सेवाओं की बहाली के बारे में ही है।
उन्होंने पीठ को सूचित किया कि हाई कोर्ट द्वारा स्वत: संज्ञान में लिए गए मामले में नोटिस जारी किया गया है और यह व्यापक मामले के बारे में है जिसमें 4जी सेवाएं भी एक मुद्दा हैं। उन्होंने कहा कि इस समय 4जी सेवाओं की बहुत जरूरत है क्योंकि स्वास्थ्य संबंधी किसी भी आपात स्थिति में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से चिकित्सकों से परामर्श किया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि 4जी सेवाएं उपलब्ध होने पर जिंदगी बचाने के प्रयास में समय से चिकित्सकों से परामर्श करना संभव होगा। पीठ ने अहमदी से सवाल किया कि जम्मू कश्मीर में कोविड-19 के कितने मामले हैं। इस पर उन्होंने जवाब दिया कि इस समय 354 मामले हैं। सालिसीटर जनरल मेहता ने कहा कि उन्हें इस याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिये एक सप्ताह का समय चाहिए।
राष्ट्रीय सुरक्षा और उग्रवाद का मुददा सामने रखने वाले अटार्नी जनरल वेणुगोपाल ने कहा कि इसमें कई दिक्कते हैं। उन्होंने हाल ही में सुरक्षा बल के साथ मुठभेड़ में मारे गए एक आतंकवादी के जनाजे में करीब 500 लोगों के शामिल होने के तथ्य की ओर भी पीठ का ध्यान आकर्षित किया। पीठ ने अटार्नी जनरल और सालिसीटर जनरल से कहा कि वे हलफनामे दाखिल करके केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन की तरफ से स्थिति स्पष्ट करें।
मेहता ने कहा कि वह इस मामले पर विस्तृत हलफनामा दाखिल करना चाहेंगे। इस पर पीठ ने याचिका को 27 अप्रैल के लिए सूचीबद्ध कर दिया। अहमदी ने इस पर कहा कि चूंकि अटार्नी जनरल ने राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा उठाया है, इसलिए समस्या वाले इलाकों में इंटरनेट पर पाबंदी लगायी जा सकती है लेकिन पूरे केंद्र शासित प्रदेश में ऐसा नहीं किया जा सकता।
एक अन्य याचिकाकर्ता ‘प्रायवेट स्कूल्स एसोसिसएशन आफ जम्मू एंड कश्मीर’ की अधिवक्ता चारू अंबवानी ने भी केंद्र शासित प्रदेश में 4जी इंटरनेट सेवा बहाल करने का अनुरोध किया और कहा कि इसके बगैर 2200 से भी ज्यादा स्कूल ऑनलाइन क्लास चलाने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि प्रदेश में 20 लाख से ज्यादा छात्रों का भविष्य दांव पर लगा हुआ है क्योंकि समुचित इंटरनेट सेवा की अनुपलब्धता की वजह से वे अपनी पढ़ाई नहीं कर पा रहे हैं।
पीठ ने कहा कि केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन से जवाब मांगा गया है और वह पहले उसका अध्ययन करना चाहेगी। सुप्रीम कोर्ट ने नौ अप्रैल को फाउण्डेशन फॉर मीडिया प्रोफेशनल्स की याचिका पर केंद्र और जम्मू कश्मीर प्रशासन को नोटिस जारी किए थे जिसमें केंद्र शासित प्रदेश में इंटरनेट सेवाओं की गति 2जी तक ही सीमित रखने के 26 मार्च के आदेश को चुनौती दी गयी है।