देश की सबसे बड़ी अदालत (सुप्रीम कोर्ट) ने नागरिकता संशोधन कानून (Citizenship amendment law) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एक नयी याचिका पर बुधवार को केन्द्र को नोटिस जारी किया और इसे पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ संलग्न कर दिया।
इस याचिका में कहा गया है कि मुस्लिम वर्ग को स्पष्ट रूप से अलग रखना संविधान में प्रदत्त मुसलमानों के समता और पंथनिरपेक्षता के अधिकारों का हनन है। प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश राय की पीठ ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस मामले की सुनवाई करते हुये नोटिस जारी किये।
पीठ ने इसी मुद्दे पर पहले से ही लंबित याचिकाओं के साथ इन याचिकाओं को संलग्न करने का आदेश दिया। ये याचिकायें तमिलनाडु तौहीद जमात, शालिम, ऑल असम लॉ स्टूडेन्ट्स यूनियन, मुस्लिम स्टूडेन्ट्स फेडरेशन और सचिन यादव ने दायर की हैं।
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देश में 10 जनवरी को अधिसूचित नागरिकता संशोधन कानून के तहत 31 दिसंबर 2014 तक अफ्गानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में आस्था के आधार पर उत्पीड़न के कारण भारत आये गैर मुस्लिम अल्पसंख्यक हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के सदस्यों को भारत की नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है।
इस कानून की संवैधानिकता को इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के साथ ही कांग्रेस के नेता जयराम रमेश, राजद नेता मनोज झा, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा सहित अनेक लोगों ने चुनौती दे रखी है। इनका तर्क है कि नागरिकता संशोधन कानून संविधान में प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन करता है और धर्म के आधार पर एक वर्ग के सदस्यों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान गैरकानूनी है।