श्योपुर: प्रदेश में बिजली की बढ़ती खपत को ध्यान में रखते हुए अब सरकार ने प्रदेश के सभी सरकारी कॉलेजों को सौर ऊर्जा से रोशन करने का फैसला किया है। खास बात यह है कि इसके लिए कॉलेजों को एक धेला भी खर्च नहीं करना पडेगा। जो कंपनी सौर ऊर्जा प्लांट लगाएगी,वह सस्ती दर पर कॉलेज प्रशासन को बिजली मुहैया कराएगी। उच्च शिक्षा विभाग के इस फैसले का लाभ श्योपुर एवं विजयपुर कॉलेजों को भी मिलेगा। श्योपुर सहित सूबे के समस्त सरकारी कॉलेज अब सौर ऊर्जा से रोशन होंगे।
ऊर्जा विकास निगम ने इस दिशा में अपना काम प्रारंभ कर दिया है। यूं तो सरकारी संस्थानों में अभी तक कब के सौर ऊर्जा प्लांट लग जाते,लेकिन प्लांट पर भारी भरकम खर्चा आने के कारण अभी तक 95 प्रतिशत सरकारी संस्थानों में सौर ऊर्जा सिस्टम नहीं लग सके हैं। इसलिए अब सरकार ने सरकारी कॉलेजों में सौर ऊर्जा प्लांट लगाने की नई प्लानिंग की है। आम के आम गुठलियों के दाम वाली कहावत को चरित्रार्थ करते हुए सरकार रेस्को मॉडल आधारित प्लांट लगाने जा रही है।
रेस्को मॉडल आधारित प्लांट के तहत जो निजी कंपनी प्लांट लगाएगी, वह कॉलेज को रियायती दर पर बिजली उपलब्ध कराएगी। इसका मतलब यह है कि सौर ऊर्जा प्लांट के लिए कॉलेज प्रबंधनों को एक रूपया भी खर्च नहीं करना पडेगा और कॉलेज भी रोशन होता रहेगा। हां रियायती दर पर मिलने वाली सौर ऊर्जा के बदले बिल जरूर अदा करना पड़ेगा। उच्च शिक्षा विभाग ने इस संबंध में सभी कॉलेज प्राचार्यों को निर्देश भी जारी कर दिए हैं। खास बात यह है कि यह प्लांट उन्हीं कॉलेजों में लगाए जाएंगे, जिनका अपना खुद का भवन है। किराए के मकानों में चल रहे कॉलेजों को यह सुविधा नहीं मिलेगी।
हजारों रुपए की होगी बचतः प्रदेश के सरकारी कॉलेजों में हर माह बिजली बिल पर हजारों रूपए खर्च होते हैं। साल में यह आंकडा लाखों में पहुंच जाता है। यह राशि उच्च शिक्षा विभाग को भुगतनी होती है। अब रेस्को मॉडल में कॉलेजों को बहुत ही रियायती दर पर बिजली मिलेगी। इसी के साथ सरप्लस बिजली आगे समायोजित भी की जा सकेगी। कंपनी कॉलेजों में मुफ्त सोलर प्लांट लगाएगी,जिसका कॉलेज भरपूर उपयोग करेगा।
आधे से भी कम रेट पर मिलेगी बिजलीः जो निजी कंपनी कॉलेजों में सोलर प्लांट लगाएगी, वह कॉलेज को सामान्य उपभोक्ताओं को मिलने वाली बिजली की तुलना में आधे से भी कम कीमत पर बिजली उपलब्ध कराएगी। इससे कॉलेज का बिजली पर खर्च होने वाले खर्चें में खासी कमी आने की संभावना है। बिजली के ऐवज में जो बिल आएगा,कॉलेज को उसका ही भुगतान करना होगा। ऐसा तब तक चलता रहेगा। जब तक कि प्लांट की लागत नहीं निकल आती।
…तो ग्रिड में चली जाएगी बची हुई बिजली ः सौर ऊर्जा अधिकारियों की मानें तो बडे कॉलेजों में 50 किलोवाट के प्लांट से आसानी से बिजली आपूर्ति हो जाएगी। यह प्लांट प्रतिदिन 200 यूनिट बिजली पैदा करेगा। यदि कॉलेज ने एक दिन में 100 यूनिट बिजली खपत की तो शेष 100 यूनिट बिजली ग्रिड में चली जाएगी। यानि इस बिजली का उपयोग कॉलेज बाद में भी कर सकेंगे। इसके लिए नेट मीटर लगाया जाएगा, जो बिजली खपत का पूरा हिसाब-किताब रखेगा।
प्राचार्य शासकीय कॉलेज डॉ.एस.डी. राठोरका कहना है कि बिजली के अनाप-शनाप बिल आ रहे हैं, जिससे उन्हें भरना मुश्किल हो रहा है। वैसे तो कॉलेज प्रबंधन स्वयं के व्यय पर सौर ऊर्जा प्लांट लगाने पर विचार कर रहा है,लेकिन यदि उच्च शिक्षा विभाग निजी कंपनियों के माध्यम से प्लांट लगवाना चाहता है तो इससे अच्छी कोई बात नहीं हो सकती। हालांकि इस संबंध में अभी तक कोई विस्तृत निर्देश नहीं मिले हैं।