बंबई उच्च न्यायालय में एक सिख दंपति ने याचिका दायर कर महाराष्ट्र सरकार को राज्य में आनंद विवाह अधिनियम, 1909 लागू करने के लिए नियम बनाने का निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया है। वकील दंपति द्वारा इस महीने की शुरुआत में दायर याचिका में कहा गया है कि दिल्ली, पंजाब, केरल, असम और राजस्थान समेत भारत के 10 राज्यों में इस कानून के क्रियान्वयन के लिए पहले ही नियम बनाए जा चुके हैं।
महाराष्ट्र शासन ने आनंद विवाह अधिनियम घोषित नहीं किए
आनंद विवाह अधिनियम सिखों के ‘आनंद कारज’ नामक विवाह संस्कार को वैधानिक मान्यता देता है। ‘आनंद कारज’ के अनुसार किया गया कोई भी विवाह इस संबंधी अनुष्ठान के पूरा होने की तारीख से वैध माना जाता है। याचिका में कहा गया, ‘‘यह काफी दुर्भाग्यपूर्ण है कि महाराष्ट्र ने अभी तक आनंद विवाह अधिनियम के लिए नियम घोषित नहीं किए हैं। सिखों के विवाह के पंजीकरण के लिए आनंद विवाह अधिनियम के तहत अलग कानून होने के बावजूद महाराष्ट्र में उन्हें हिंदू विवाह के तहत पंजीकरण कराना पड़ता है।’’
याचिकाकर्ता ने आनंद कारज के जरिए किया था विवाह
इस याचिका पर बाद में उपयुक्त समय पर सुनवाई होने की संभावना है। याचिका में कहा गया है कि आनंद विवाह अधिनियम 1909 में आधिकारिक रूप से घोषित किया गया था। इसे 2012 में संशोधित किया गया था, जिससे राज्यों के लिए इस अधिनियम के कार्यान्वयन के वास्ते अपने नियम तैयार करना अनिवार्य है। याचिकाकर्ताओं ने 2021 में महाराष्ट्र के औरंगाबाद के एक गुरुद्वारे में आनंद कारज के जरिए विवाह किया था, लेकिन नियमों के अभाव के कारण वे आनंद विवाह अधिनियम के तहत अपनी शादी का पंजीकरण नहीं करा पा रहे। याचिका में कहा गया है कि नियम बनाने में महाराष्ट्र सरकार की विफलता लाखों सिखों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
आपको बता दे की कानूनी रूप में हिंदू व मुस्लिम के विवाह अधिनियम लागू हैं, लेकिन सिख समाज को हिंदू विवाह अधिनियम के तहत कानून में जोड़ा गया हैं। सिख विवाह में वही प्रावधान लागू होते है, जो हिंदू विवाह अधिनियम में लागू होते हैं। लेकिन सिख दंपति ने आनंद कारज को अपना अधिनियम बनाने के अदालत में याचिका दायर की हैं।