लुधियाना : दल खालसा ने सिखों की स्वयं-राज की इतिहासिक इच्छा और स्वयं निर्णय के अधिकारों की मांग को पुन: दोहराते हुए भारतीय आजादी दिवस को काले दिन के तौर पर मनाने का फैसला किया है। दल खालसा ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को भारत पाकिस्तान बंटवारे के दौरान मिली आजादी का लाभ सिखों को नहीं मिला और वह भारतीय लीडरशिप के बहकावे में आकर एक गुलामी के पश्चात दूसरी गुलामी में फ ंस गए है। जत्थेबंदी ने अदालतों और सरकारों द्वारा ‘जन-गन-मन’ जबरदस्ती थोपे जाने को नाकारते हुए कहा कि जबरी थोपा जा रहा फर्जी राष्ट्रवाद हमें मंजूर नहीं है। इन विचारों का प्रकटावा करते हुए संगठन के प्रवक्ता कंवरपाल सिंह ने कहा कि सिखों ने शुरू से ही दूसरी गुलामी के विरूद्ध संघर्ष जारी रखते हुए जालंधर में 14 अगस्त की शाम को रोष प्रदर्शन किया जाएंगा।
उन्होंने बताया कि इस प्रदर्शन से पहले गुरूद्वारा गुरूनानक मिशन में एक कांफ्रेंस भी होंगी, जिसमें नामवर शख्सियतें देश द्रोह के कानून का दुरूप्रयोग, गऊ रक्षकों द्वारा दलितों और मुसलमानों पर किए जा रहे अत्याचार पंजाब के लोगों को संयुक्त राष्ट्र के अधीन स्वयं निर्णय (रिफरेंडम) के अधिकार से वंचित रखना आदि ज्वलंत मुददों पर विचार रखे जाएंगे। जाएंगा।
वरिष्ठ सिख आगु अमरीक सिंह इसडू, जसबीर सिंह खंडूर, जगजीत सिंह खोसा, सिख यूथ आफ पंजाब के प्रधान परमजीत सिंह टांडा ने भी कहा कि भारत ने सिख अकेले नहीं है बल्कि अन्य धार्मिक अल्प संख्यक, दलित भी अपने अधिकारों से वंचित है और वे भी इस गुलामी से छुटकारा पाने के लिए संघर्षशील है। उन्होंने कहा कि बदकिस्मती के साथ अंतरराष्ट्रीय भाईचारा सिखों और कश्मीरियों द्वारा किए जा रहे लोक तांत्रिक और शांतिपूर्ण संघर्ष के मामले में आंखें मूंदे बैठा है।
उन्हें इन कौमों का दर्द और मानव अधिकारों की उल्लंघना नजर नहीं आती। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए बयान कि संवाद ही हर झगड़े का हल है, के संबंध में टिप्पणि करते हुए आगुओं ने कहा कि भारतीय लीडरशिप ऐसी बातें सिर्फ लोगों को भरमाने और भाईचारे का ध्यान बांटने के लिए लंबे समय से करती आ रही है परंतु हकीकत में वह समस्याओं पर संजीदगी से हल करने के लिए संघर्षशील कौम के साथ संवाद करने में कभी भी तैयार नहीं।
– सुनीलराय कामरेड