सीताराम येचुरी : छात्र-कार्यकर्ता से लेकर उदार वामपंथी राजनीति तक का सफर

सीताराम येचुरी : छात्र-कार्यकर्ता से लेकर उदार वामपंथी राजनीति तक का सफर
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मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के पांचवें महासचिव सीताराम येचुरी देश में वामपंथ के सर्वाधिक पहचाने जाने वाले चेहरों में से एक थे और वह एक ऐसे उदार वामपंथी नेता थे जिनके मित्र सभी राजनीतिक दलों में थे। येचुरी का 72 वर्ष की आयु में बृहस्पतिवार को यहां अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया। येचुरी को 19 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था।येचुरी ने पार्टी के दिवंगत नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के मार्गदर्शन में काम सीखा, जो 1989 में गठित वी.पी. सिंह की राष्ट्रीय मोर्चा सरकार और 1996-97 की संयुक्त मोर्चा सरकार के दौरान गठबंधन युग में एक प्रमुख नेता थे। इन दोनों ही सरकारों को माकपा ने बाहर से समर्थन दिया था।संयुक्त मोर्चा सरकार के लिए साझा न्यूनतम कार्यक्रम का मसौदा तैयार करने में येचुरी ने कांग्रेस नेता पी. चिदंबरम के साथ काम किया था। सुरजीत के शिष्य ने गठबंधन बनाने की उनकी विरासत को जारी रखा और 2004 में वाम दलों के समर्थन से संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार के गठन में सक्रिय भूमिका निभाई।
येचुरी ने भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के मुद्दे पर संप्रग सरकार के साथ चर्चा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। हालांकि, 2008 में वामपंथी दलों ने इस मुद्दे पर संप्रग-1 सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसका मुख्य कारण उनके पूर्ववर्ती प्रकाश करात का अडिग रुख था।
वर्ष 2015 में पार्टी महासचिव का पदभार संभालने के बाद 'पीटीआई-भाषा' को दिए एक साक्षात्कार में येचुरी ने कहा था कि उन्हें महंगाई जैसे मुद्दों पर समर्थन वापस ले लेना चाहिए था, क्योंकि 2009 के आम चुनाव में परमाणु समझौते के मुद्दे पर लोगों को संगठित नहीं किया जा सका।येचुरी विभिन्न मुद्दों पर राज्यसभा में अपने सशक्त और स्पष्ट भाषणों के लिए जाने जाते थे। वह बहुभाषी थे और हिंदी, तेलुगु, तमिल, बांग्ला तथा मलयालम भी बोल सकते थे। वह हिंदू पौराणिक कथाओं के भी अच्छे जानकार थे और अक्सर अपने भाषणों में खासकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर हमला करने के लिए उन संदर्भों का इस्तेमाल करते थे।वह नरेन्द्र मोदी सरकार और इसकी उदार आर्थिक नीतियों के सबसे मुखर आलोचकों में से एक रहे। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले 2018 में माकपा की केंद्रीय समिति ने कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन के प्रस्ताव को खारिज कर दिया था, यहां तक ​​कि पार्टी के महासचिव येचुरी ने इस्तीफे की पेशकश भी की थी। हालांकि, 2024 के आम चुनाव के दौरान, जब एकजुट विपक्ष के लिए बातचीत शुरू हुई और विपक्षी दल एक साथ मिलकर 'इंडिया' गठबंधन बनाने लगे, तो माकपा इसका एक हिस्सा थी और येचुरी गठबंधन के प्रमुख चेहरों में से एक रहे।
राजनीति में उनका सफर 'स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया' (एसएफआई) से शुरू हुआ था, जिसमें वह 1974 में शामिल हुए और अगले ही साल पार्टी के सदस्य बन गए। आपातकाल के दौरान कुछ महीने बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल से रिहा होने के बाद वह तीन बार जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए। वर्ष 1978 में वह एसएफआई के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव बने और उसके तुरंत बाद अध्यक्ष बने।
येचुरी ने विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आवास तक मार्च किया था और उन्हें इस्तीफे की मांग करते हुए एक ज्ञापन सौंपा था। उन्होंने एक घटना को याद करते हुए कहा था कि वह प्रधानमंत्री के आवास के गेट पर उनके इस्तीफे की मांग करते हुए ज्ञापन चिपकाने के इरादे से गए थे और जब उन्हें अंदर बुलाया गया तथा इंदिरा गांधी स्वयं उनसे मिलने आईं तो वह आश्चर्यचकित रह गए।
पार्टी में उनका उत्थान बहुत तेजी से हुआ। वह 1985 में माकपा की केंद्रीय समिति के लिए चुने गए और 1992 में 40 वर्ष की आयु में पोलित ब्यूरो के लिए चुने गए।वह 19 अप्रैल 2015 को विशाखापत्तनम में पार्टी के 21वें अधिवेशन में माकपा के पांचवें महासचिव बने और उन्होंने प्रकाश करात से उस समय पदभार संभाला जब पार्टी गिरावट की ओर थी। पार्टी 2004 में 43 सांसदों से घटकर 2014 में नौ सांसदों तक सिमट गई थी। इसके बाद उन्हें 2018 और 2022 में फिर से इस पद के लिए चुना गया।
बारह अगस्त 1952 को चेन्नई में एक तेलुगु भाषी परिवार में जन्मे येचुरी के पिता सर्वेश्वर सोमयाजुला येचुरी आंध्र प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम में इंजीनियर थे और उनकी मां कल्पकम येचुरी सरकारी अधिकारी थीं।

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