दिल्ली और हरियाणा की सीमाओं पर किसान आंदोलन की अध्यक्षता कर रही संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने शुक्रवार को यानी आज कहा कि एपीएमसी मंडियों को एक लाख करोड़ रुपये के कृषि बुनियादी ढांचा कोष से वित्तीय मदद प्राप्त करने की अनुमति देने संबंधी केंद्र सरकार के फैसले को खोखला कदम करार दिया है। संयुक्त मोर्चा ने आरोप लगाया, ‘‘एक लाख करोड़ रुपये के कृषि बुनियादी ढांचा कोष का संदर्भ ‘‘बेहद भ्रामक’’ है। उन्होंने कहा कि 3 विवादास्पद केंद्रीय कृषि कानूनों का उद्देश्य कृषि उपज बाजार समितियों (एपीएमसी) का पतन है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में मंत्रिमडल की बैठक में केंद्रीय योजना में संशोधन को गुरुवार को मंजूरी दी गयी थी। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि एपीएमसी अब बाजार क्षमता के विस्तार और किसानों को बेहतर सुविधाएं प्रदान करने के लिये एक लाख करोड़ रुपये के कृषि बुनियादी ढांचा कोष से वित्तीय सुविधाएं ले सकेंगी। हालांकि, शुक्रवार को संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा,‘‘सबसे पहले, एक लाख करोड़ रुपये के कृषि बुनियादी ढांचा कोष का जिक्र करना बेहद भ्रामक है क्योंकि सरकार की ओर से एक हजार करोड़ रुपये का भी आवंटन नहीं किया गया है।’’
किसान मोर्चा ने अपने बयान में कहा कि सरकार ने एक मामूली और महत्वहीन फैसला किया है। मोर्चा ने कहा, ‘‘वास्तविक वित्त पोषण नियमित वाणिज्यिक बैंकों पर निर्भर है, और बैंकिंग क्षेत्र के कुप्रबंधन और बड़े पूंजीपतियों के साथ मिलीभगत की भारत की कहानी उजागर है। सरकार की भूमिका केवल तीन प्रतिशत का ब्याज छूट और कुछ क्रेडिट गारंटी कवरेज प्रदान करने की है।’’ उसने दावा किया कि 2020-21 के संशोधित बजट में कृषि बुनियादी ढांचा कोष के लिए केवल 208 करोड़ रुपये और 2021-22 के बजट में 900 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे।
संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा,‘‘सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जब नरेंद्र मोदी सरकार अपने कॉरपोरेट कृषि कानूनों के साथ खड़ी होती है, जो एपीएमसी बाजारों के पूरे कानूनी ढांचे को ध्वस्त करने के उद्देश्य से कमजोर करते हैं और ऐसे में केवल एपीएमसी को कुछ और ऋण लेने की अनुमति देना खोखला कदम है।’’ गौरतलब है कि किसान केंद्र सरकार द्वारा बनाए गए तीनों नए कृषि कानूनों को निरस्त किए जाने की मांग को लेकर दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं।