राष्ट्रपति चुनाव के मतदान के बाद बीजेपी ने उप-राष्ट्रपति चुनाव के लिए शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू को उम्मीदवार बनाया है। संसदीय बोर्ड की बैठक के बाद नायडू के नाम की घोषणा करते हुए पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि बीजेपी की सहयोगी पार्टियां नायडू के नाम पर सहमत हैं। आइए जानते हैं वो पांच कारण, जिनकी वजह से पार्टी की पहली पसंद बने नायडू:-
1. उत्तर और दक्षिण का सामंजस्य
राष्ट्रपति चुनाव के लिए बीजेपी ने रामनाथ कोविंद को कैंडिडेट बनाया था। कोविंद कानपुर से आते हैं और दलित हैं। उनके नाम की घोषणा के बाद जब विपक्ष ने मीरा कुमार को कैंडिडेट बनाया, तो राष्ट्रपति चुनाव को दलित बनाम दलित का रंग दे दिया गया। राष्ट्रपति चुनाव में कोविंद पहले से मजबूत नजर आ रहे हैं। अब अगर नायडू की नैय्या पार लग जाती है, तो उप-राष्ट्रपति दक्षिण से होने की वजह से बीजेपी का उत्तर और दक्षिण का संतुलन बन जाएगा।
2. दक्षिण भारतीय उम्मीदवार के मुकाबले नायडू
कांग्रेस ने उप-राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए महात्मा गांधी के पोते गोपाल कृष्ण गांधी को कैंडिडेट बनाया है। इसकी वजह पूछने पर कांग्रेस से जवाब आया कि गोपाल दक्षिण भारतीय हैं और इस वजह से द्रमुक पार्टियां उनका समर्थन करेंगी। दिल्ली में पैदा हुए गोपाल लंबे समय से चेन्नई में रह रहे हैं। राष्ट्रपति चुनाव में पहले उम्मीदवार घोषित न करने का खामियाजा विपक्ष पहले ही भुगत चुका है।
ऐसे में उसने गोपाल को आगे किया। लेकिन एक दक्षिण भारतीय के जवाब में बीजेपी ने भी दक्षिण भारतीय नेता उतार दिया। वेंकैया नायडू आंध्र प्रदेश से आते हैं और राजनीति में उनकी कर्मभूमि भी आंध्र ही रही है। दक्षिण भारत के लिहाज से नायडू बेस्ट कैंडिडेट हैं।
3. दक्षिण भारत में करना है पार्टी का प्रसार
नायडू संभवत: इकलौते नेता हैं, जिन्होंने दक्षिण भारतीय होने के बावजूद हिंदी सीखने पर मेहनत की और फिर उत्तर भारत की रैलियों में भाषण दिए। बीजेपी को दक्षिण के जिन राज्यों में अभी बहुत मेहनत करनी है। उन राज्यों की पार्टियों के साथ नायडू के अच्छे संबंध हैं। नायडू के बहाने बीजेपी दक्षिण भारतीय वोटर्स को लुभा सकेगी। वेंकैया के आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू से अच्छे संबंध हैं। जिनकी पार्टी TDP पहले से एनडीए का हिस्सा है। अगर नायडू तेलंगाना के मुख्यमंत्री चंद्रशेखर राव के साथ संतुलन बिठा ले जाते हैं, तो TRS भी एनडीए के समर्थन में आ सकती है।
4. वेंकैया का संसदीय कार्य का अनुभव
वेंकैया चार बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। 1998 में वो कर्नाटक से राज्यसभा सांसद बने। फिर 2004 और 2010 में भी उन्हें कर्नाटक से राज्यसभा भेजा गया। 2016 में वो राजस्थान से राज्यसभा सांसद बने. 2014 से 2016 तक नायडू संसदीय कार्यमंत्री भी रहे। उच्च सदन में उन्हें 19 साल का अनुभव है।
बीजू जनता दल, AIADMK, तेलुगु देशम पार्टी और तेलंगाना राष्ट्र समिति, ये चारों पार्टियां अभी अपने-अपने राज्यों में सत्ता में हैं, जिससे राज्यसभा में इनकी ठोस मौजूदगी है। नायडू के इन चारों पार्टियों के नेताओं के साथ अच्छे रिश्ते हैं। बीजेपी भी इन राज्यों में सरकार बनाना चाहती है, लेकिन इसके लिए उसे अभी बहुत मेहनत करनी है। उप-राष्ट्रपति रहते हुए नायडू की सीधी जिम्मेदारी राज्यसभा के संचालन की होगी, जहां बीजेपी के पास बहुमत नहीं है। इस लिहाज से नायडू बीजेपी के बड़े गेम-प्लान का हिस्सा हैं।
5. 25 साल का अनुभव, लेकिन विवाद जीरो
नायडू 1972 से राजनीति में हैं, सफल छात्र नेता रहे, MISA कानून के तहत जेल गए, संघ से जुड़े, ABVP के सदस्य रहे, बीजेपी में प्रवक्ता, वरिष्ठ उपाध्यक्ष और अध्यक्ष जैसे कई महत्वपूर्ण पद संभाले। अटल सरकार में मंत्री रहे और अब मोदी सरकार में भी मंत्री हैं। इस लंबे राजनीतिक सफर के बावजूद नायडू पर कोई दाग, कोई विवाद नहीं है। उन पर कोई आर्थिक-सामाजिक लांछन नहीं है। उनकी दो संतान हैं। लेकिन दोनों राजनीति से दूर हैं।
खुद नायडू की छवि काम डिलिवर करने वाले नेता की है। नरेंद्र मोदी सरकार बनाने के बाद से लगातार साफ छवि पर जोर देते रहे हैं। उनकी कैबिनेट में रसायन और ऊर्वरक मंत्री रहे निहालचंद मेघवाल पर रेप का आरोप लगने के बाद सरकार की बहुत किरकिरी हुई थी। ऐसे में नायडू मोदी के लिए बड़े साफ-सुथरे कैंडिडेट हैं।