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कुछ यूं रहा ‘ट्रेजेडी किंग’ दिलीप कुमार का सफर, प्रेमियों के दिल पर बनायी अपनी अमिट पहचान

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार का बुधवार को निधन हो गया। वह 98 वर्ष के थे। दिलीप कुमार लंबे समय से उम, संबंधी बीमारों से ग्रसित थे।

बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता दिलीप कुमार का बुधवार को निधन हो गया। वह 98 वर्ष के थे। दिलीप कुमार लंबे समय से उम्र संबंधी बीमारों से ग्रसित थे। सुपरस्टार अभिनेता दिलीप कुमार को 30 जून को मुंबई के हिंदुजा अस्पताल की गहन चिकित्सा इकाई (आईसीयू) में भर्ती कराया गया था। बॉलीवुड में दिलीप कुमार का नाम एक ऐसे अभिनेता के रूप में याद किया जायेगा जिन्होंने अपने दमदार अभिनय और जबरदस्त संवाद अदायगी से सिने प्रेमियों के दिल पर अपनी अमिट पहचान बनायी।
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11 दिसंबर 1922 को पेशावर अब पाकिस्तान में जन्में युसूफ खान उर्फ दिलीप कुमार अपनी माता-पिता की 13 संतानों में तीसरी संतान थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पुणे और देवलाली से हासिल की। इसके बाद वह अपने पिता गुलाम सरवर खान कि फल के व्यापार में हाथ बंटाने लगे। कुछ दिनों के बाद फल के व्यापार में मन नही लगने के कारण दिलीप कुमार ने यह काम छोड़ दिया और पुणे में कैंटीन चलाने लगे। वर्ष 1943 में उनकी मुलाकात बांबे टॉकीज की व्यवस्थापिका देविका रानी से हुयी, जिन्होंने उनकी प्रतिभा को पहचान मुंबई आने का न्यौता दिया। पहले तो दिलीप कुमार ने इस बात को हल्के से लिया लेकिन बाद में कैंटीन व्यापार में भी मन उचट जाने से उन्होंने देविका रानी से मिलने का निश्चय किया।
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देविका रानी ने युसूफ खान को सुझाव दिया कि यदि वह अपना फिल्मी नाम बदल दे तो वह उन्हें अपनी नई फिल्म.ज्वार भाटा बतौर अभिनेता काम दे सकती है। देविका रानी ने युसूफ खान को वासुदेव,जहांगीर और दिलीप कुमार में से एक नाम को चुनने को कहा।वर्ष 1944 में प्रदर्शित फिल्म ज्वार भाटा से बतौर अभिनेता दिलीप कुमार ने अपने सिने करियर की शुरूआत की। फिल्म ज्वार भाटा की असफलता के बाद दिलीप कुमार ने प्रतिमा। जुगनू-.अनोखा प्यार। नौका डूबी जैसी कुछ बी और सी ग्रेड वाली फिल्मों में बतौर अभिनेता काम किया लेकिन इन फिल्मों सेउन्हें कोई खास फायदा नहीं पहुंचा। चार वर्ष तक मायानगरी मुंबई में संघर्ष करने के बाद 1948 में प्रदर्शित फिल्म मेला की सफलता के बाद दिलीप कुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में अपनी बनाने में सफल हो गये।। 
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दिलीप कुमार के सिने करियर पर नजर डालने पर पायेगे कि उन्होंने फिल्मों में विविधिता पूर्ण अभिनय कर कई किरदारों को जीवंत कर दिया।यही वजह है कि फिल्म आदमी में दिलीप कुमार के अभिनय को देखकर हास्य अभिनेता ओम प्रकाश ने कहा था ‘‘यकीन नही होता फन इतनी बुंलदियों तक भी जा सकता है।’’ वही विदेशी पर्यटक उनकी अभिनीत फिल्मों में उनके अभिनय को देखकर कहते है ‘‘हिंदुस्तान में दो ही चीज देखने लायक है एक ताजमहल दूसरा दिलीप कुमार ’’ दिलीप कुमार के सिने कैरियर मे उनकी जोड़ अभिनेत्री मधुबाला के साथ काफी पसंद की गयी। फिल्म तराना के निर्माण के दौरान मधुबाला दिलीप कुमार से मोहब्बत करने लगी।उन्होंने अपने ड्रेस डिजाइनर को गुलाब का फूल और एक खत देकर दिलीप कुमार के पास इस संदेश के साथ भेजा कि यदि वह भी उससे प्यार करते है तो इसे अपने पास रख ले और दिलीप कुमार ने फूल और खत को सहर्ष स्वीकार कर लिया।
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वर्ष 1957 में प्रदर्शित बी.आर.चोपड़ा की फिल्म नया दौर में पहले दिलीप कुमार के साथ नायिका की भूमिका के लिये मधुबाला का चयन किया गया और मुंबई में ही इस फिल्म की शूटिंग की जानी थी, लेकिन बाद मे फिल्म के निर्माता को लगा कि इसकी शूटिंग भोपाल में भी करनी जरूरी है। मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान ने बेटी को मुंबई से बाहर जाने की इजाजत देने से इंकार कर दिया। उन्हें लगा कि मुंबई से बाहर जाने पर मधुबाला और दिलीप कुमार के बीच का प्यार और परवान चढ़गा और वह इसके लिए राजी नही थे। बाद मे बी.आर.चोपड़ को मधुबाला की जगह वैजयंती माला को लेना पड़। अताउल्लाह खान बाद में इस मामले को अदालत में ले गये और इसके बाद उन्होंने मधुबाला को दिलीप कुमार के साथ काम करने से मना कर दिया और यहीं से दिलीप कुमार और मधुबाला की जोड़ अलग हो गयी।
वर्ष 1960 में दिलीप कुमार के सिने करियर की एक और अहम फिल्म मुगले आजम प्रदर्शित हुयी। ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर के.आसिफ के निर्देशन में सलीम-अनारकली की प्रेमकथा पर बनी इस फिल्म में दिलीप कुमार ने शहजादे सलीम की भूमिका को रूपहले पर्दे पर जीवंत कर दिया, जबकि अनारकली की भूमिका में मधुबाला थी।
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वर्ष 1961 में प्रदर्शित फिल्म गंगा जमुना के जरिये दिलीप कुमार ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया। फिल्म गंगा जमुना में दिलीप कुमार ने हिंदी और भोजपुरी का मिश्रण किया और उनका यह प्रयोग काफी सफल रहा।इस फिल्म में दिलीप कुमार के साथ उनके भाई नासिर खान ने भी अभिनय किया।फिल्म की सफलता के बाद दिलीप कुमार ने इसके बाद भी फिल्म बनाने का निश्चय किया लेकिन इन्कमटैक्स वालों के बुरे वर्ताव के कारण उन्होंने फिर कभी फिल्म निर्माण करने से तौबा कर ली।
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वर्ष 1966 में दिलीप कुमार ने फिल्म अभिनेत्री सायरा बानो के साथ निकाह कर लिया।वर्ष 1967 में प्रदर्शित फिल्म राम और श्याम दिलीप कुमार के सिने करियर की एक और सुपरहिट पिल्म साबित हुयी।दो जुडवां भाइयों की कहानी पर आधारित इस फिल्म में दब्बू और निडर के रूप में दोहरी भूमिकाओं को दिलीप कुमार ने बेहद सधे अंदाज में निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया था।बाद मे फिल्म राम और श्याम से प्रेरणा लेकर फिल्मकारों ने कई दोहरी भूमिका वाली फिल्मो का निर्माण किया।
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वर्ष 1976 में प्रदर्शित फिल्म बैराग की असफलता के बाद दिलीप कुमार ने लगभग पांच वर्षो तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। वर्ष 1980 में फिल्म निर्माता -निर्देशक मनोज कुमार के कहने पर दिलीप कुमार ने फिल्म क्रांति में बतौर चरित्र अभिनेता अपने सिने करियर की दूसरी पारी शुरू की। फिल्म में अपने दमदार चरित्र से दिलीप कुमार ने एक बार फिर से दर्शकों का मनमोह कर फिल्म को सुपरहिट बना दिया।

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