देश की सबसे बड़ी अदालत उच्चतम न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) ने कहा है कि यौन उत्पीड़न मामलों में बाल पीड़ितों और गवाहों को सही तरह से सुनने, उनसे बातचीत के लिए लोक अभियोजक निश्चित तौर पर प्रशिक्षित होने चाहिए। न्यायालय ने ऐसे लोक अभियोजकों को प्रशिक्षित करने का कार्यक्रम विकसित करने की जरूरत पर भी जोर दिया।
शीर्ष न्यायालय ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून के तहत दर्ज मामलों के लिए अलग से विशेष अभियोजकों की जरूरत है। न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने कहा कि उन्हें पता होना चाहिए कि यौन उत्पीड़न के पीड़ित बच्चों से सच कैसे सामने लाऐं।
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पॉक्सो मामलों के लिए लोक अभियोजकों को सौंपा गया कार्य बहुत कष्टदायक होता है, जिसपर अत्यंत सावधानी और संवेदनशीलता से काम होना चाहिए। पीठ ने कहा कि इसलिए ना केवल अलग से विशेष लोक अभियोजकों की जरूरत है, बल्कि प्रशिक्षण कार्यक्रम भी विकसित करने की आवश्यकता है, जहां इन विशेष लोक अभियोजकों को इन अदालतों में आने वाले मुद्दों से निपटने के वास्ते प्रशिक्षित होना चाहिए।
मनौवैज्ञानिक, स्वास्थ्य और अन्य मुद्दे हो सकते हैं। शीर्ष न्यायालय ने सभी राज्यों को पॉक्सो मामलों के लिए खास तौर पर गठित सभी अदालतों में विशेष लोक अभियोजक नियुक्त करने का निर्देश दिया। पीठ ने कहा कि हम सभी उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों से यह सुनिश्चित करने का अनुरोध करते हैं कि राज्य की न्यायिक अकादमी में विशेष कार्यक्रम विकसित किए जाएं ताकि पॉक्सो अदालतों से जुड़े इन विशेष लोक अभियोजक को ना केवल कानून का प्रशिक्षण मिले बल्कि बाल मनोविज्ञान, बाल व्यवहार, स्वास्थ्य मुद्दों की भी उन्हें जानकारी हो।
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शीर्ष अदालत ने असम और जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को हलफनामा दाखिल कर बताने का निर्देश दिया है कि पॉक्सो अदालतों में खास तौर पर पॉक्सो मामलों की ही सुनवाई होनी चाहिए, दूसरे मामलों की नहीं। ये हलफनामे 28 फरवरी को दाखिल किए जाएंगे। पीठ बाल दुष्कर्म से जुड़ी घटनाओं की लगातार बढ़ती संख्या के मद्देनजर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी।