विपक्ष ने सरकार पर रेलवे के निजीकरण के प्रयास का आरोप लगाते हुए गुरुवार को कहा कि हमारी कुछ सामाजिक जिम्मेदारियां हैं जिनका निर्वहन किया जाना चाहिए जबकि सत्तापक्ष ने कहा कि रेलवे भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की अभिव्यक्ति और आर्थिक विकास की रीढ़ है तथा इसे आने वाले समय में इसे मुनाफा कमाने में सक्षम बनाया जाएगा।
रेल मंत्रालय से संबंधित अनुदान मांगों पर लोकसभा में चर्चा की शुरुआत करते हुए कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि पिछले तीन साल से रेल बजट को आम बजट में ही मिला दिया गया है। इससे उसकी चमक धूमिल पड़ गई है। उन्होंने कहा कि बजट में रेलवे पर 50 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की बात कही गई है।
सरकार को उम्मीद है कि सार्वजनिक निजी भागीदारी के तहत रेलवे की परिसंपत्तियां बेचकर जो पैसा आएगा उससे यह निवेश किया जाएगा। लेकिन, पिछले बजटों में खर्च का जो वायदा किया गया था वह भी अब तक पूरा नहीं किया जा सका है। चौधरी ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2014 में वाराणसी में घोषणा की थी कि वह रेलवे का निजीकरण नहीं होने देंगे और कम से पीएम मोदी के वायदे का सम्मान किया जाना चाहिए।
उन्होंने रायबरेली और चितरंजन की इकाइयों समेत रेलवे की सात विनिर्माण इकाइयों के निगमीकरण के प्रस्ताव का भी विरोध किया और कहा कि सरकार की मंशा पहले निगमीकरण और बाद में निजीकरण करने की है। उन्होंने सवाल किया ये सभी इकाइयां मुनाफा कमा रही हैं, फिर उन्हें क्यों बेचा जा रहा है।
कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि मोदी सरकार के कार्यकाल में रेलवे की स्थिति खराब हुई है। वित्त वर्ष 2019-20 में उसका परिचालन अनुपात बढ़कर 98.40 पर पहुंच गया। इसका मतलब यह है कि हर 100 रुपये कमाने के लिए उसे 98.40 रुपये खर्च करने पड़ रहे हैं।
इस बजट में उसे 96.20 रखने की बात कही गयी है, लेकिन यह नहीं बताया गया है कि यह कैसे संभव होगा। पिछले वित्त वर्ष में सरकार ने रेलवे के लिए 12,999 रुपये के राजस्व का लक्ष्य रखा था, लेकिन वास्तव में उसकी कमाई 6,014 करोड़ रुपये ही रही।