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निर्भया कांड : दोषियों को अलग – अलग फांसी दिए जाने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने 11 फरवरी तक टाली सुनवाई

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या कांड के दोषियों को एक साथ फांसी दिए जाने के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को 11 फरवरी तक टाल दिया है।

निर्भया सामूहिक दुष्कर्म और हत्या कांड के दोषियों को एक साथ फांसी दिए जाने के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई को 11 फरवरी तक टाल दिया है। 
न्यायमूर्ति आर भानुमति, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना की विशेष खंडपीठ ने शुक्रवार को केंद, की विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) की सुनवाई मंगलवार , 11 फरवरी को दोपहर दो बजे तक के लिए टाल दी।
केंद, सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि गुनाहगारों की ओर से फांसी में देरी के लिए अलग-अलग तमाम प्रयास किए जा रहे हैं। यह निर्धारित करने का समय आ गया है कि ऐसे मामलों में गुनाहगारों को अलग-अलग सजा के प्रावधान किए जाने चाहिए। 
इस पर न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि किसी को भी न्यायिक उपचार के इस्तेमाल के लिए विवश नहीं किया जा सकता। न्यायमूर्ति भानुमति ने भी कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुनाहगारों को सात दिन का समय दिया है। उन्होंने कहा कि इस मामले में अगले सप्ताह मंगलवार को दोपहर दो बजे सुनवाई की बात कही। 
इस पर श्री मेहता ने खंडपीठ से चारों गुनाहगारों को कम से कम नोटिस जारी करने का अनुरोध किया। उन्होंने कहा कि वह खुद जेल अधिकारियों के माध्यम से चारों गुनाहगारों को नोटिस तामील करा देंगे। 
न्यायालय ने कहा कि जब उच्च न्यायालय ने एक सप्ताह का समय गुनाहगारों को दिया है तो बीच में नोटिस जारी करना ठीक नहीं है। उसके बाद खंडपीठ ने सुनवाई के लिए मंगलवार अपराह्न दो बजे का समय निर्धारित कर दिया। इस बाबत आदेश लिखाए जाने तक श्री मेहता नोटिस जारी करने का अनुरोध किया, लेकिन न्यायालय ने उसे अनसुना कर दिया। 
केंद, सरकार ने उच्च न्यायालय के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमे उसने कहा है कि चारों दोषियों को अलग-अलग फांसी नहीं हो सकती। 
गौरतलब है कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को अपने फैसले में कहा कि निर्भया के चारों दोषियों को अलग-अलग समय पर फांसी नहीं दी जा सकती जबकि केंद, सरकार ने अपनी याचिका में कहा था कि जिन दोषियों की याचिका किसी भी फोरम में लंबित नहीं है, उन्हें फांसी पर लटकाया जाए। एक दोषी की याचिका लंबित होने से दूसरे दोषियों को राहत नहीं दी जा सकती।

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