सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कोरोना वायरस (कोविड-19) के गंभीर मरीजों के इलाज के दिशा-निर्देशों में किसी प्रकार के बदलाव का निर्देश देने से इंकार कर दिया। दरअसल, कोर्ट में कोरोना के गंभीर मरीजों को हाइड्रानिक्सक्लोरोक्वीन तथा एंटीबायोटिक एजिथ्रोमाइसिन मिलाकर दी जा रही दवाइयों को लेकर याचिका दायर की गई थी।
गैर सरकारी संगठन ‘पीपुल फॉर बेटर ट्रीटमेन्ट’ ने इन दो दवाओं के मिश्रण के इस्तेमाल के दुष्प्रभाव को लेकर याचिका दायर की। न्यायमूर्ति एन वी रमण, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ ने गैर सरकारी संगठन की याचिका पर वीडियो कांफ्रेन्सिंग के माध्यम से सुनवाई करते हुए कहा कि कोविड-19 के उपचार के लिए अभी तक कोई दवा नहीं है और डॉक्टर अलग-अलग तरीके अपना रहे हैं।
पीठ ने कहा कि उपचार के निर्देशों के बारे में निर्णय लेना डाक्टरों का काम है। कोर्ट इसका विशेषज्ञ नहीं हैं और वे यह निर्णय नहीं ले सकतीं कि किस तरह का इलाज़ किया जाना चाहिए। पीठ ने इस संगठन के अध्यक्ष एवं ओहायो स्थित भारतीय मूल के चिकित्सक कुणाल साहा से कहा कि वह अपनी याचिका भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के पास प्रतिवेदन के रूप में ले जायें जो उनके सुझावों पर विचार कर सकती है।
मामले की सुनवाई के दौरान साहा ने कहा कि वह कोविड-19 के इलाज के तरीके को चुनौती नहीं दे रहे हैं लेकिन इन दो दवाओं के मिश्रण के इस्तेमाल के दुष्प्रभाव होते हैं और इसी वजह से लोगों की मृत्यु हो रही है। उन्होने कहा कि अमेरिकी हृदय रोग संस्थान ने इस मिश्रण के दुष्प्रभाव के बारे में गंभीर चेतावनी जारी की है जिस पर विचार किया जाना चाहिए। इस पर पीठ ने कहा कि उन्हें भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद के पास अपनी याचिका एक प्रतिवेदन के रूप में भेजनी चाहिए।
पीठ ने कहा कि कोर्ट उपचार के लिए अपनाए जाने वाले किसी विशेष तरीके के बारे में निर्देश नहीं दे सकता है। साथ ही उसने केंद्र की ओर से पेश सालिसीटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि वह यह याचिका भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद को उपलब्ध करायें जो इन सुझावों पर गौर करेगी।