छावला गैंगरेप के आरोपियों को मौत की सजा के बाद रिहा कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में पुलिस की घोर लापरवाही को आधार बनाते हुए दोषियों को छोड़ दिया। कोर्ट के इस फैसले ने अपनी बेटी के लिए न्याय की आस में 10 सालों तक कोर्ट का चक्कर लगा रही मां को तोड़कर रख दिया। कोर्ट के फैसले के बाद फूट-फूटकर रोई मां ने कहा कि "मैं हार गई, अब जीने का कोई मकसद नहीं बचा।"
फरवरी साल 2012 में 19 साल की लड़की के अपहरण, गैंगरेप और हैवानियत का ये मामला रूह कंपा देने वाला है। अपहरण के तीसरे दिन मासूम का शव क्षत-विक्षत शव पड़ा मिला था। शव उस लायक भी नहीं था कि उसको पहली नजर में पहचाना जा सके। हैवानियत के आरोपियों को सजा-ए-मौत के बाद रिहाई के फैसले ने देशभर को चौंका दिया है।
पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट परिसर के बाहर फूट-फूटकर रोते हुए कहा, "11 साल बाद भी यह फैसला आया है।हम हार गए... हम जंग हार गए... मैं उम्मीद के साथ जी रही थी... मेरे जीने की इच्छा खत्म हो गई है' मुझे लगता था कि मेरी बेटी को इंसाफ मिलेगा।"
रोते बिलखते पीड़िता के पिता ने कहा, "अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ। 11 साल से हम दर-दर भटक रहे हैं। निचली कोर्ट ने भी अपना फैसला सुनाया। हमें राहत मिली। हाईकोर्ट से भी हमें आश्वासन मिला लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हमें निराश किया। अपराधियों के साथ जो होना था, वह हमारे साथ हुआ।"
आखिरी सांस तक जिस्म को काटते रहे हैवान....और फिर
हैवानियत की हद को पार करने वाला मामला साल 2012 का है, जब छावला की रहने वाली 19 साल की लड़की गुड़गांव से काम खत्म कर बस से घर वापस लौट रही थी। बस से उतरने के बाद पैदल रास्ते को तय कर रही लड़की के पीछे से आ रही लाल रंग की कार में बैठे तीन युवक अपहरण कर लेते हैं।
आरोपियों ने लड़की को हरियाणा ले जाने का फैसला किया। तब तक कार के अंदर उसके साथ हैवानियत शुरू हो चुकी थी। हरियाणा पहुंचकर आरोपियों ने ठेके से शराब खरीदी और फिर कार को एक सुनसान जगह पर ले जाकर शराब पीते हुए मासूम के साथ दरिंदगी करने लगे। लड़की के जिस्म पर कोई ऐसी जगह नहीं थी जहां हैवानों की दरिंदगी का सबूत न हो। आरोपियों ने लड़की के शरीर पर जगह-जगह दातों से काटा था।
उनकी हैवानियत और भूख यही शांत नहीं हुई, उन्होंने गाड़ी से लोहे का पाना और जैक निकालकर उसके सिर पर वार किया। दरिंदों ने उसे जला कर बदशक्ल करने के लिए गाड़ी के साइलेंसर से दूसरे औजारों को गर्म कर उसके जिस्म को जगह-जगह दाग दिया। यहां तक कि उसके प्राइवेट पार्ट को भी जलाया गया। इसके बाद आरोपियों ने बीयर की बोतल फोड़ी और उससे लड़की के पूरी जिस्म को तब तक काटते रहे जब तक युवती की मौत नहीं हो गई।
मौत के बाद भी हैवानियत
मासूम की मौत के बाद उसके प्राइवेट पार्ट में भी टूटी बोतल घुसा दी थी। उन दरिदों ने लड़की की आंखें फोड़कर उनमें कार की बैटरी का तेजाब भर दिया। जब काफी देर तक लड़की घर नहीं पहुंची तो शुरू हुई उसकी तलाश और पुलिस की लापरवाही। बेटे के घर नहीं पहुंचने पर उसके पिता पुलिस के पास पहुंचे दिल्ली पुलिस ने उन्हें जो जवाब दिया वो शर्मसार करने वाला था। बेटी को ढूढ़ने के लिए मदद मांगने पहुंचे पिता को पुलिस ने जवाब दिया कि संदिग्ध बदमाशों को ढूंढ़ने के लिए उनके पास गाड़ी उपलब्ध नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की आलोचना की। कोर्ट परिसर के बाहर पीड़िता के माता-पिता के साथ मौजूद महिला अधिकार कार्यकर्ता योगिता भयाना ने कहा, "मैं पूरी तरह से स्तब्ध हूं। सुबह, हमें पूरी उम्मीद थी कि शीर्ष अदालत मौत की सजा को बरकरार रखेगी और हमें यह भी लगता था कि वे मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदल सकते हैं।"
