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उच्चतम न्यायालय ने कहा -बरी करने के आदेश में अकारण हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि बरी किये जाने के आदेश में अकारण हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय ने इसके साथ ही पत्नी के साथ क्रूरता के एक मामले में पति को दोषमुक्त किये जाने के आदेश को बहाल रखा।

उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि बरी किये जाने के आदेश में अकारण हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। न्यायालय ने इसके साथ ही पत्नी के साथ क्रूरता के एक मामले में पति को दोषमुक्त किये जाने के आदेश को बहाल रखा।शीर्ष अदालत ने कहा है कि अपीलीय अदालत को इस तरह के आदेश को रद्द करने से पहले, बरी करने संबंधी सभी तर्कों पर विचार करना चाहिए।
व्यक्ति को दोषी ठहराने के आदेश को बहाल कर दिया
न्यायमूर्ति उदय उमेश ललित और न्यायमूर्ति एस. आर. भट की पीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के मार्च 2019 के फैसले को निरस्त कर दिया, जिसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 498-ए के तहत कथित अपराध के लिए व्यक्ति को दोषी ठहराने के आदेश को बहाल कर दिया था।पीठ ने कहा, अपील के फैसले में कोई कारण नहीं बताया गया है कि आईपीसी की धारा 498-ए के तहत दर्ज बरी करने के आदेश को रद्द करने की आवश्यकता क्यों थी।
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उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को खारिज करते
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘यह एक स्थापित कानून है कि बरी किये जाने के आदेश में अकारण हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए और बरी करने से पहले, अपीलीय अदालत को हर उस कारण पर विचार करना चाहिए, जिसे बरी करने के लिए दर्ज किया गया था।पीठ ने कहा, ‘‘रिकॉर्ड पर विचार करते हुए हमें ऐसे बरी आदेश को चुनौती देने वाली किसी अपील की सुनवाई का कोई कारण नहीं नजर आता।’’न्यायालय ने कहा, ‘‘नतीजतन, हम आरोपी की अपील स्वीकार करते हैं, उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेश को खारिज करते हैं और अपीलीय अदालत द्वारा दर्ज धारा 498-ए के तहत दंडनीय अपराध के संबंध में बरी करने के आदेश को बहाल करते हैं।

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