सुप्रीम कोर्ट अपने 2004 के फैसले पर फिर से विचार करेगा, जिसमें शैक्षणिक संस्थानों में नौकरियों और प्रवेश में आरक्षण देने के लिए राज्यों के पास अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों (SC/ST) का उप-वर्गीकरण नहीं किया जा सकता। कोर्ट की 5 सदस्यीय संविधान पीठ ने गुरुवार को मामला 7 जजों की पीठ को भेज दिया।
न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि ई वी चिन्नैया मामले में संविधान पीठ के 2004 के फैसले पर फिर से गौर किए जाने की जरूरत है और इसलिए इस मामले को उचित निर्देश के लिए प्रधान न्यायाधीश के समक्ष रखा जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने ये मामला आगे विचार के लिए 7 जजों की बेंच को भेज दिया।
पीठ में न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी, न्यायमूर्ति विनीत सरन, न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस भी शामिल थे। पीठ ने कहा कि उसकी नजर में 2004 का फैसला सही से नहीं लिया गया और राज्य किसी खास जाति को तरजीह देने के लिए एससी/एसटी के भीतर जातियों को उप-वर्गीकृत करने के लिए कानून बना सकते हैं।
पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ पंजाब सरकार द्वारा दायर इस मामले को प्रधान न्यायाधीश एस ए बोबडे के पास भेज दिया ताकि पुराने फैसले पर फिर से विचार करने के लिए वृहद पीठ का गठन किया जा सके। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने आरक्षण देने के लिए एससी/एसटी को उप-वर्गीकृत करने की सरकार को शक्ति देने वाले राज्य के एक कानून को निरस्त कर दिया था।
हाई कोर्ट ने इसके लिए सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले का हवाला दिया और कहा कि पंजाब सरकार के पास एससी/ एसटी को उप-वर्गीकृत करने की शक्ति नहीं है।