सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने मानवता की मिसाल देते हुए सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की पुलिस को यौनकर्मियों के साथ सम्मानजनक व्यवहार करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा की अगर स्वेच्छा से किया जाए तो सेक्स वर्क भी प्रोफेशन होता है, जिसमें पुलिस को हस्तशेप नहीं करना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्स वर्कर्स भी कानून के तहत सम्मान और सुरक्षा के हकदार हैं, उन्हें भारत के संविधान द्वारा अनुच्छेद 21 के तहत यह गारंटी दी गई है।
सुप्रीम कोर्ट ने सेक्स वर्क को माना प्रोफेशन
25 मई को न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव की अध्यक्षता वाली 3-न्यायाधीशों की पीठ ने आगे कहा कि यौन कार्य में स्वैच्छिक रूप से शामिल होना अवैध नहीं है लेकिन कानून द्वारा वेश्यालय चलाने की अनुमति भी नहीं है। एससी ने कहा “यौनकर्मी कानून के तहत समान संरक्षण के हकदार हैं। आपराधिक कानून सभी मामलों में उम्र और सहमति के आधार पर समान रूप से लागू होना चाहिए।"
सुप्रीम कोर्ट ने आगे यह भी कहा कि जब यह स्पष्ट हो जाए कि यौनकर्मी अगर वयस्क है और सहमति से भाग ले रहे हैं, तो पुलिस को हस्तक्षेप करने या कोई आपराधिक कार्रवाई करने से बचना चाहिए। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि पेशे के बावजूद इस देश में प्रत्येक व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत एक सम्मानजनक जीवन जीने का अधिकार है।"
यौनकर्मियों को लेकर SC ने केंद्र को जारी की सिफारिश
अदालत ने आगे पुलिस को यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि वे वेश्यालयों पर छापेमारी में के वक्त वर्कर्स गिरफ्तारी, दंडित, परेशान या पीड़ित न हों और यह भी सुनिश्चित करें कि वेश्यालय में पाए जाने पर बच्चे को अपनी मां से अलग ना किया जाए। एक सेक्स वर्कर के बच्चे को उसकी मां से सिर्फ इसलिए नहीं ले जाना चाहिए क्योंकि वह देह व्यापार का काम करती है।
अदालत ने यह भी कहा कि यदि कोई बच्चा यौनकर्मियों के साथ रहता पाया जाता है तो पुलिस को यह नहीं मान लेना चाहिए कि नाबालिग बच्चे की तस्करी की गई थी। पीठ ने कहा, "मानव शालीनता और गरिमा की बुनियादी सुरक्षा यौनकर्मियों और उनके बच्चों तक सभी को है।"
सामान्य नागरिकों की तरह यौनकर्मियों को भी मिले सभी सुविधाएं
इसके अलावा अदालत ने अपने आदेश में सलाह दी कि पुलिस को इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि यदि कोई यौनकर्मी शिकायत दर्ज कर रहे हैं, तो उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए और विशेष रूप से यदि दर्ज की गई शिकायत यौन उत्पीड़न से संबंधित है। अदालत ने कहा कि यौनकर्मियों को हर वह सुविधा प्रदान की जानी चाहिए जो सामान्य नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मिलती है, जिसमें तत्काल चिकित्सा-कानूनी देखभाल भी शामिल है। पीठ ने कहा कि “यह देखा गया है कि यौनकर्मियों के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर क्रूर और हिंसक होता है। यह ऐसा है जैसे वे एक वर्ग हैं जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है।”
पुलिस ना अपनाए क्रूर और हिंसक रवैया
अदालत ने सलाह दी कि प्रशासन को "गिरफ्तारी, छापेमारी और बचाव अभियान के दौरान यौनकर्मियों की पहचान का खुलासा न करने के लिए अत्यधिक सावधानी बरतनी चाहिए, चाहे वह पीड़ित हों या आरोपी हों और ऐसी कोई तस्वीर प्रकाशित या प्रसारित न करें जिससे ऐसी पहचान का खुलासा हो।" सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यह देखा गया है कि यौनकर्मियों के प्रति पुलिस का रवैया अक्सर क्रूर और हिंसक होता है। ऐसा लगता है कि वे एक ऐसे वर्ग हैं जिनके अधिकारों को मान्यता नहीं है।"
इच्छा के विरुद्ध कार्रवाई करने से बचें
पीठ ने आगे कहा कि सेक्स वर्कर द्वारा कंडोम के इस्तेमाल को पुलिस को सेक्स वर्कर के दुराचार के सबूत के रूप में नहीं लेना चाहिए। अदालत ने यह भी सिफारिश करते हुए यह भी कहा कि यौनकर्मियों को गिरफ्तार किया जाए और मजिस्ट्रेट के सामने लाया जाए, उन्हें सुधारात्मक सुविधा में दो से तीन साल की सजा दी जाए। सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव ने यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि यौनकर्मियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध सुधार गृह में रहने के लिए मजबूर न किया जाए।