सुप्रीम कोर्ट ने कर्ज न चुकाने के कारण किसान की जमीन की नीलामी पर लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के एक किसान सुखराम की जमीन की नीलामी पर रोक लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट ने कर्ज न चुकाने के कारण किसान की जमीन की नीलामी पर लगाई रोक
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किसान ने क्यों लिया था क़र्ज़ ?

दलित किसान सुखराम ने डेयरी और भैंस पालन के लिए उत्तर प्रदेश सहकारी ग्रामीण विकास बैंक लिमिटेड से 23,049 रुपये का कर्ज लिया था। कर्ज का कुछ हिस्सा चुकाने के बावजूद सुखराम की 2000 में मौत हो गई। हालांकि, 2002 में प्रशासन ने शेष 7,397 रुपये की वसूली के लिए उनकी जमीन की नीलामी की कार्यवाही शुरू की।

सुप्रीम कोर्ट ने रखा फैसला बरकरार

किसान के बेटे ने नीलामी को चुनौती देते हुए तर्क दिया कि मृतक व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकती। कमिशनर ने शुरू में नीलामी को खारिज कर दिया था, लेकिन उच्च न्यायालय ने फैसले को बरकरार रखा। किसान की पीड़ा सुनने के बाद शीर्ष अदालत ने संबंधित प्रतिवादियों को नोटिस जारी किया और कहा, "इस बीच, आज की स्थिति बरकरार रखी जाएगी।" इस तरह शीर्ष अदालत ने नीलामी रोक दी और किसान को राहत दी है।

कब हुआ अंतरिम आदेश पारित ?

न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की बेंच ने 25 अक्टूबर को अंतरिम आदेश पारित किया। याचिकाकर्ता और मृतक किसान के बेटे की ओर से अधिवक्ता उत्कर्ष सिंह, मोहम्मद तौहीद अर्शी, मोहम्मद हुमैद और तुषार मनोहर खैरनार पेश हुए।याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा पारित 24 जनवरी 2023 और 21 मई 2024 के आदेश को चुनौती दी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय न्यायिक आयुक्त, इलाहाबाद मंडल, इलाहाबाद द्वारा पारित 3 जनवरी 2007 के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसके द्वारा याचिकाकर्ता की आपत्ति को स्वीकार कर लिया गया था और 15 फरवरी 2002 की नीलामी को इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि यह मृत व्यक्ति के खिलाफ केस किया जा रहा था । हालांकि उच्च न्यायालय ने आयुक्त के फैसले को वापस ले लिया।

जानिये याचिका में क्या कहा गया ?

याचिका में कहा गया है कि किसान के वकील के अदालत में मौजूद नहीं होने और अदालत के समक्ष आवेदन की लिस्टिंग के बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं होने के कारण हाईकोर्ट का फैसला एकतरफा पारित किया गया। याचिकाकर्ता ने कहा, "यह विशेष अनुमति याचिका इस आधार पर दायर की गई है कि उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता के तर्कों और प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत पर विचार किए बिना रिट याचिका को खारिज करके गलती की है। याचिका खारिज किए जाने के कारण याचिकाकर्ताओं को अपूरणीय क्षति का सामना करना पड़ रहा है, और न्याय की जीत के लिए रिट याचिका को खारिज करना महत्वपूर्ण है।"

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