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हेट स्पीच पर सुप्रीम कोर्ट सख्त, कहा- नफरती भाषण से खत्म हो जाते हैं सम्मान का अधिकार

हाल के दिनों में देश में हेट स्पीच के मामले तेजी से बढ़े हैं और इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्री स्पीच के अधिकार में और कटौती नहीं की जा सकती

हाल के दिनों में देश में हेट स्पीच के मामले तेजी से बढ़े हैं और इसको देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्री स्पीच के अधिकार में और कटौती नहीं की जा सकती। सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने एक सुनवाई के दौरान कहा कि नफरत फैलाने वाला भाषण इंसान को सम्मान के अधिकार से वंचित करता है। भारत में मानवीय गरिमा न केवल एक मूल्य है बल्कि एक अधिकार भी है जो लागू होना चाहिए।
लोकतंत्र में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
जस्टिस नागरत्ना ने मंगलवार को कहा कि मानवीय गरिमा आधारित लोकतंत्र में भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का इस्तेमाल इस तरह से किया जाना चाहिए जो अन्य नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करे और उसे बढ़ावा दे। जस्टिस नागरत्ना पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ का हिस्सा थीं जिसने मंगलवार को व्यवस्था दी कि बड़े सार्वजनिक पदों पर आसीन पदाधिकारियों की ‘वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के मौलिक अधिकार पर अतिरिक्त पाबंदी नहीं लगाई जा सकती क्योंकि इस अधिकार पर रोक लगाने के लिए संविधान के तहत पहले से विस्तृत आधार मौजूद हैं।
क्या सरकार जिम्मेदार हो सकती हैः जस्टिस नागरत्ना
जस्टिस नागरत्ना ने उच्च पदों पर आसीन सरकारी अधिकारियों पर अतिरिक्त पाबंदियों के व्यापक मुद्दे पर सहमति जताई, लेकिन विभिन्न कानूनी मुद्दों पर अलग विचार प्रकट किया। इनमें एक विषय यह है कि क्या सरकार को उसके मंत्रियों के अपमानजनक बयानों के लिए अप्रत्यक्ष रूप से जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट का बयान
उन्होंने कहा कि सरकार के किसी कामकाज के संबंध में या सरकार को बचाने के लिए एक मंत्री द्वारा दिए गए बयान को सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत को लागू करते हुए अप्रत्यक्ष रूप से सरकार का बयान बताया जा सकता है। उन्होंने कहा, “नफरत भरे भाषण की सामग्री चाहे जो भी हो, यह इंसान को गरिमा के अधिकार से वंचित करता है।” उन्होंने कहा कि लोकतंत्र भारतीय संविधान की बुनियादी विशेषताओं में से एक है, इसमें यह निहित है कि बहुमत के शासन में सुरक्षा और समावेश की भावना होगी।
हेट स्पीच मूलभूत मूल्यों पर प्रहारः जस्टिस नागरत्ना
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि नफरत फैलाने वाला भाषण असमान समाज का निर्माण करते हुए मूलभूत मूल्यों पर प्रहार करता है और अलग-अलग पृष्ठभूमियों, खासतौर से “हमारे भारत जैसे देश के”, नागरिकों पर भी प्रहार करता है। उन्होंने कहा कि भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी बेहद आवश्यक अधिकार है ताकि नागरिकों को शासन के बारे में अच्छी तरह जानकारी हो। 

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