सुप्रीम कोर्ट राजनीतिक रूप से संवेदनशील अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले में मंगलवार को सुनवाई करेगा। मामले की सुनवाई पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ करेगी जिसमें प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर हैं।
शीर्ष अदालत ने इससे पहले 29 जनवरी को प्रस्तावित सुनवाई को 27 जनवरी को रद्द कर दिया था क्योंकि न्यायमूर्ति बोबडे उस दिन उपलब्ध नहीं थे। इस मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 अपीलें दाखिल की गई हैं।
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चार दीवानी मामलों में दिये गये इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले में कहा गया था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर-बराबर बांटा जाए। गत 25 जनवरी को पांच न्यायाधीशों की पीठ का पुनर्गठन किया गया था क्योंकि पहले पीठ में शामिल रहे न्यायमूर्ति यू यू ललित ने मामले में सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था।
सुब्रमण्यम स्वामी का SC से अयोध्या में पूजा के मौलिक अधिकार की याचिका पर शीघ्र सुनवाई का आग्रह
भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने अयोध्या में विवादित राम मंदिर में पूजा के अपने मौलिक अधिकार पर अमल के लिये दायर याचिका पर शीघ्र सुनवाई का सोमवार को उच्चतम न्यायालय से आग्रह किया। सुप्रीम कोर्ट ने स्वामी से कहा कि वह अयोध्या मामलो की सुनवाई के दौरान मंगलवार को उपस्थित रहें।
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ से स्वामी ने अनुरोध किया कि उनकी याचिका पर अलग से सुनवाई की जाये। इस पर पीठ ने स्वामी से कहा कि अयोध्या प्रकरण के मुख्य मामले की मंगलवार को सुनवाई होगी और वह इस दौरान न्यायालय में मौजूद रहें। शीर्ष अदालत ने पिछले साल स्वामी को अयोध्या भूमि विवाद मामले में हस्तक्षेप की अनुमति देने से इंकार कर दिया था और स्पष्ट किया था कि मूल पक्षकारों के अलावा किसी अन्य को इसमें पक्ष रखने की अनुमति नहीं दी जायेगी।
हालांकि, पीठ ने स्वामी की इस दलील पर विचार किया था कि वह इस मामले में हस्तक्षेप का अनुरोध नहीं कर रहे हैं बल्कि उन्होंने तो अयोध्या में राम लला के जन्म स्थान पर पूजा करने के अपने मौलिक अधिकार को लागू कराने के लिये अलग से याचिका दायर की है। पीठ ने कहा कि चूंकि हम हस्तक्षेप की अनुमति नहीं दे रहे हैं, इसलिए स्वामी की याचिका पुनर्जीवित मानी जायेगी और इस पर उचित पीठ कानून के अनुसार विचार करेगी।