उच्चतम न्यायालय ने स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद के पार्थिव शरीर के अंतिम दर्शन को लेकर दिये गए उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले पर अगले आदेश तक शुक्रवार को रोक लगा दी।
हरिद्वार निवासी डॉ. विजय वर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए उत्तराखंड उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राजीव शर्मा तथा न्यायमूर्त मनोज कुमार तिवारी की युगलपीठ ने सरकार को स्वामी सानंद के पार्थिव शरीर को हरिद्वार भेजने के निर्देश शुक्रवार को दिया।
उल्लेखनीय है कि गंगा की स्वच्छता के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर 113 दिनों से अनशन पर बैठे पर्यावरणविद स्वामी ज्ञानस्वरूप सानंद (प्रोफेसर गुरुदास अग्रवाल) का 11 अक्टूबर ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में निधन हो गया था।
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स्वामी सानंद ने निधन से पूर्व अपने शरीर को जनहित में दान करने की घोषणा कर दी थी। एम्स प्रशासन ने स्वामी सानंद के निधन के बाद उनके पार्थिव शरीर को अपने पास रख लिया था, जिसके कारण उनके अनुयायियों को पार्थिव शरीर के दर्शन करने का मौका नहीं मिल पाया था। याचिकाकर्ता की ओर से अदालत से स्वामी सानंद के पार्थिव शरीर के दर्शन करने की अनुमति प्रदान करने की मांग की गयी।
पीठ ने मामले की सुनवाई के बाद सरकार को स्वामी सानंद के पार्थिव शरीर को उनके अनुयायियों के दर्शन करने के लिए रखने का निर्देश दिया। अदालत ने अपने निर्देश में कहा कि 72 घंटे तक स्वामी सानंद के पार्थिव शरीर को दर्शन के लिये रखा जाएगा। इसके बाद स्वामी सानंद के पार्थिव शरीर को वापस एम्स ले जाया जा सकेगा।
उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ वकील शिरीष कुमार मिश्र ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने अगले आदेश तक इस पर रोक लगा दी। श्री मिश्र ने अपनी याचिका में कहा था कि स्वामी सानंद के शरीर को रसायनों का लेप संक्षित कर दिया गया है और अगर उनके शरीर को उनके अनुयायियों के दर्शन के लिए रखा जाएगा, तो उनका अंग दान नहीं हो पायेगा।