लुधियाना-अमृतसर : उधर भारत माता की जय के नारों के बीच शहीद गुरमेल सिंह का भी अंतिम संस्कार अमृतसर के गांव अलकेड़ा में राजकीय सम्मान के साथ कर दिया गया। शहीद के परिवार को सांत्वना देने के लिए आसपास के कई गांवों से लोग पहुंचे। शहीद गुरमेल सिंह के घर पर विधायक राजकुमार वेरका पहुंचे और पंजाब सरकार की तरफ से परिवार के एक सदस्य को नौकरी व 12 लाख रुपये देने की घोषणा की।
शहीद गुरमेल सिंह के परिवार वालों का कहना है कि उन्हें अपने लाल की शहादत पर फख्र है। गुरमेल की पत्नी कुलजीत कौर ने कहा वह मुझसे कहते थे मैं देश की आन बान और शान के लिए शहीद हो जाऊं तो आंसू मत बहाना। मैं एक दिन कफऩ में लिपट कर आऊंगा, मेरे कफन पर आंसू न बहाना। 13 साल पहले गुरमेल शादी की हुई थी।
गुरुद्वारा साहिब के नजदीक स्थित शहीद गुरमेल सिंह के घर के बाहर सैकड़ों लोगों का जमावड़ा लगा था। उपस्थित हर शख्स गहरी खामोशी में था जबकि हर आंख नम थीं। शहीद के घर के भीतर गांव की महिलाएं फूट-फूट कर रो रही थीं। शहीद की पत्नी कुलजीत कौर की आंखों से अश्रुधारा थमने का नाम नहीं ले रही थी। वह रोते-रोते कभी निढाल हो जाती, तो कभी उठकर इधर-उधर दौडऩे लगती। शहीद के पिता तरसेम ङ्क्षसह, मां गुरमीत कौर व बहन दलजीत कौर भी सिसक रही थीं। शोकाकुल परिवार को ढाढस दिलाने के लिए पूरा गांव मौजूद था, लेकिन अपने के खोने का गम हर किसी को सता रहा था। अधिकांश रिश्तेदारों का रोरो कर बुरा हाल था।
34 वर्षीय गुरमेल सिंह चौदह वर्ष पूर्व सेना में भर्ती हुए थे। वह छुट्टी लेकर जब भी घर आते, अपनी पत्नी व पिता से यही बात कहते-एक दिन मैं कफन में लिपटकर घर आऊंगा। तब आप रोना मत। बस यह समझ लेना कि मैं देश के लिए न्यौछावर हो गया हूं। शहीद गुरमेल ङ्क्षसह द्वारा कही गई यह बात उनकी पत्नी कुलजीत कौर बार-बार दोहरा रही थीं। कुलजीत के अनुसार वह उन्हें ऐसी बात कहने से रोकती थी, पर वह कहते थे कि एक दिन ऐसा ही होगा।
तरसेम सिंह ने कहा कि बेटे ने देश के लिए जान दी है। मेरे लिए यह फख्र की बात है। मैं गुरमेल की बेटी रिपनजीत कौर को भी सेना में भेजूंगा। शहीद गुरमेल सिंह का भाई मलविंदर सिंह एक निजी एंबुलेंस में ड्राइवर है। गरीबी की चादर में लिपटे इस परिवार को गुरमेल सिंह का बहुत सहारा था। मलविंदर सिंह ने कहा कि ऐसा लग रहा है जैसे मेरे शरीर से आत्मा निकल गई हो। गुरमेल सिंह मुझे बहुत प्यार करता था। इसी महीने छुट्टी लेकर घर आया था। मुझसे गले मिला और कहा कि छोटे वीर, जल्दी ही घर दा सारा काम करवा लवांगे। इसके बाद 10 दिसंबर को वह राजौरी लौट गया। शहीद के भाई के मुताबिक चौदह वर्ष की नौकरी करने के बाद गुरमेल सिंह पांच माह बाद सेवानिवृत्त होने वाले थे। तीन वर्ष पूर्व उन्होंने गांव में स्थित पुश्तैनी मकान को बेचकर गुरुद्वारा साहिब के नजदीक मकान बनाया था। यह मकान अभी भी निर्माणाधीन है। ईंटों ढांचा ही खड़ा कर पाए। सेवानिवृत्ति के बाद इस पर प्लस्तर करवाने की योजना थी। जो अब अधूरी है। शुक्रवार को उसका फोन आया था। पत्नी व बच्चों से बात की और जल्दी घर आने की बात की। वह घर तो आया, पर शहीदी का तमगा लेकर।
– सुनीलराय कामरेड
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