कल से शुरु हो रहे श्राद्ध पक्ष (पितृपक्ष) के चलते नैमिषारण्य के गयावर गाँव में श्राद्ध करने वाले लोग पहुँचने लगे हैं। इसे पवित्र भूमि माना गया है यहाँ श्राद्ध एवं तर्पण से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है7 गोमती नदी के तट पर बसे इस गयावर गाँव में गयासुर का एक छोटा सा मंदिर है जहाँ पर श्रद्धालु पितरों के मोक्ष के लिए तर्पण एवं श्राद्ध करते हैं। पुराणों में वर्णन है कि नैमिष, अयोध्या, मथुरा, काशी, कांची तीर्थ, हरिद्वार, उज्जैन, जगन्नाथपुरी एवं गया में श्राद्ध व तर्पण से पितरों को मोक्ष मिलता है। धर्मशास्त्रों में भी वर्णित है कि श्राद्ध के तीन काल होते हैं, पौष मास, चैत्र मास एवं आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में श्राद्ध-तर्पण को महत्वपूर्ण माना गया है।
पंडित संतोष मिश्र ने बताया कि ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पृथ्वी लोक में देवता उत्तरी गोलार्द्ध में विचरण करते हैं। भाद्रपद मास की पूर्णिमा को चन्द्रलोक के साथ-साथ पृथ्वी के नत्रदीक से गुत्ररते हैं। ज्योतिष की मान्यता है कि इस मास की प्रतीक्षा में हमारे पूर्वज पृथ्वी पर अपने-अपने घरों में आते हैं। जहाँ उनकी संतान श्राद्ध तर्पण के माध्यम से पितरों को मोक्ष प्राप्ति के लिए अग्रसर करते हैं।
वे अपनी संतान द्वारा यह सुख प्राप्त करने के बाद अपने परिवार (कुल) को आशीर्वाद देते हुए पितृलोक वापस लौट जाते हैं। सीतापुर चक्रतीर्थ के प्रधान पुजारी राजेन्द, पाण्डेय ने बताया कि श्राद्ध के दौरान अपने पूर्वजों के साथ- साथ ऐसे अनजान लोगों और जीव जंतुओं को भी तर्पण प्रदान किया जाता है जिन्होंने अपने जीवन में कभी किसी व्यक्ति की सहायता की हो7 इससे व्यक्ति को अध्यात्म के पथ पर जाने में सहायता मिलती है7 इसी मान्यता के तहत गयावर गाँव में इस कर्मकांड को पूर्ण करने के लिए श्रद्धालु श्राद्ध एवं तर्पण का सामान लेकर पुरोहितों के पास पहुँच रहे हैं।
श्रद्धालुओं के आगमन को देखते हुए उपजिलाधिकारी मिश्रिख एवं क्षेत्राधिकारी मिश्रिख ने गाँव में शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिये पुलिस बल की तैनाती की है। स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने के लिए हैंडपंप ठीक कराये गये हैं। जगह जगह सफाई करने के बाद चूने का छिड़काव किया गया है। संक्रामक रोगों से बचाव के लिए निकट के अस्पताल सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द, को भी तैयार रहने के निर्देश दिए गये हैं7 ललिता देवी मंदिर के प्रधान पुजारी जगदम्बा प्रसाद ने बताया कि श्राद्ध का श्रद्धापूर्वक कर्म ही महत्वपूर्ण है। स्कन्द पुराण के अनुसार पितरों के कल्याण के लिए श्रद्धापूर्वक किये जाने वाले कर्म विशेष को श्राद्ध कहा जाता है7 भारतीय संस्कृति में यह माना गया है कि धार्मिक एवं सामाजिक कार्यों से धर्म एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है।