वामदलों ने बृहस्पतिवार को जम्मू कश्मीर के राज्यपाल द्वारा राज्य विधानसभा को भंग किए जाने के फैसले को गैरकानूनी और असंवैधानिक कदम बताया है।
माकपा पोलित ब्यूरो ने एक बयान में कहा कि यह निर्धारित करने का काम राज्यपाल का नहीं है कि परस्पर विरोधी विचारधारा वाले राजनीतिक दल सरकार का गठन नहीं कर सकते हैं। पार्टी ने कहा कि अगर घटक दलों की विचारधारा को ही मानक समझा जाये, तब जम्मू कश्मीर विधानसभा के चुनाव के बाद भाजपा और पीडीपी की साझा सरकार के गठन की भी इजाजत नहीं दी जानी चाहिये थी।
जम्मू कश्मीर के संविधान विशेषज्ञ राज्यपाल से असहमत
पार्टी के महासचिव सीताराम येचुरी ने इस मामले में भाजपा की निंदा करते हुये कहा कि विधानसभा भंग करने का राज्यपाल का फैसला न सिर्फ सभी नियम कानूनों बल्कि उच्चतम न्यायालय के आदेश का भी उल्लंघन है।
उल्लेखनीय है कि बुधवार को जम्मू कश्मीर में कांग्रेस के सहयोग से पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस की सरकार के गठन की संभावनायें तलाशे जाने की कवायद के बीच राज्य के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने विधानसभा भंग कर दी थी।
भाकपा के महासचिव एस सुधाकर रेड्डी ने मोदी सरकार पर संवैधानिक संस्थाओं की प्रतिष्ठा और सम्मान को खत्म करने का आरोप लगाते हुये कहा कि जम्मू कश्मीर विधानसभा को भंग करने का फैसला यह दर्शाता है कि मोदी सरकार सत्ता में बने रहने के लिये किसी भी हद तक जा सकती है।
माकपा पोलित ब्यूरो ने कहा कि इस बारे में राज्यपाल की भूमिका सिर्फ बहुमत का दावा करने वाले दल के नेता से सदन में बहुमत साबित करने के लिये कहने मात्र तक सीमित है। पार्टी ने इसे केन्द्र की मोदी सरकार का निरंकुश कदम बताते हुये कहा कि इससे राज्य की स्थिति और अधिक जटिल एवं खराब होगी।