26/11 की नन्ही चश्मदीद, जिसने Ajmal Kasab के खिलाफ कोर्ट में दी थी गवाही

Devika Rotawan
26/11 Mumbai Attack
Devika Rotawan 26/11 Mumbai Attack
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26/11 Mumbai Attack: 26 नवंबर 2011 ये वो तारीख है जिस दिन समु्द्र के रास्ते भारत आए आतंकियों ने मुंबई के शिवाजी टर्मिनस स्टेशन पर अपना कहर बरपाया था। आतंकियों ने इस दिन को आतंकियों ने काले इतिहास के रुप में बदल दिया था। आज भी इस दिन को याद कर देशवासी सिहर उठते हैं। इन्ही करोड़ों में से एक नाम देविका रोतावन (Devika Rotawan) का है, जो इस जो इसकी भुक्तभोगी है।

कसाब को जेल पहुंचाने में बड़ा हाथ

देविका रोतावन सिर्फ 9 साल की थी जब आंतकी हमले में मोहम्मद अजमल कसाब (Ajmal Kasab) ने उसके पैरों में गोली मार दी थी। स्टेशन पर इस हमले में 50 लोगों की मौत हो गई थी और 100 लोग घायल हो गए थे। जब देविका ने जवाबी कार्रवाई में बच गए हमलावर कसाब को पहचाना था।

इसके साथ ही वो अदालत में कसाब की पहचान करने वाली सबसे कम उम्र की गवाह (Youngest Witness In Ajmal Kasab Case)  थी। तब मीडिया में उनकी एक तस्वीर को खूब कवरेज मिली थी जिसमें वह बैसाखी के सहारे अदालत पहुंचती दिख रही थी।

लेकिन अब देविका की जिंदगी बदल गई है आइए जानते है 'वो लड़की जिसने कसाब को पहचाना' इस समय कैसे हालातों में रह रही है।

पहले की तरह शर्मिली नहीं देविका

26/11 Mumbai Attack: देविका अब पहले की तरह शर्मिली नहीं हैं, अब वह लोगों से बातचीत करने और उनका जवाब देने की अभ्यस्थ हो गईं हैं। वह अब 24 साल की हैं। अगले महीने वो 25 साल की हो जाएगी। लोग उन्हें जानते हैं और आए दिन मिलने पहुंचते हैं।

इंसाफ मिला लेकिन जिंदगी बदल गई

एक रिपोर्ट के मुताबिक देविका बताती है कि उस वक्त (26\11 मुंबई अटैक) मेरी उम्र 10 साल रही होगी जब 2009 में कोर्ट में सुनवाई के दौरान मैंने कसाब को पहचाना था। कसाब ने तब एक नजर में मुझे देखा और फिर नजरें नीचे झुका ली। इंसाफ मिला लेकिन, मेरी जिंदगी इतनी आसान नहीं थी।

स्कूल ने डर के मारे मुझे एडमिशन नहीं दिया। कहा कि मेरे रहने से और बच्चों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। किसी तरह पढ़ाई पूरी हुई।

सरकार की तरफ से मिली आर्थिक मदद

देविका बताती है कि उसे सरकार की तरफ से आर्थिक मदद भी मिलती रही। बता दें, देविका के परिवार को सरकार की ओर से पिछले आठ सालों के अंदर 13 लाख का मुआवजा मिला है। लेकिन फिर भी देविका की माली हालत बहुत ठीक नहीं है। वह नौकरी की तलाश कर रही हैं। उनके पिता को भी कहीं नौकरी नहीं मिल रही।

'आंतकवाद को खत्म करना चाहती हूं'

देविका पुलिस अफसर बनने की ख्वाहिश रखती हैं लेकिन वह पिछले कई महीनों से नौकरी तलाश रही हैं, हर बार निराशा हाथ लगती है। देविका बताती है कि वो आईपीएस ऑफिसर बनकर आंतकवाद को खत्म कर देंगी। आगे वह कहती हैं, "फिलहाल तो मैं कोई भी नौकरी तलाश रही हूं, लेकिन मैं अपने सपने को पूरा करने का पूरा प्रयास करूंगी"।

26/11 Mumbai Attack: देविका कहती हैं, "मुझे उन लोगों के बारे में पता है जो कहते हैं कि 'बड़ी बातें करने से कोई बड़ा नहीं बनता'। लेकिन ऐसे लोगों को मेरे संघर्षों के बारे में नहीं पता है, इतने सालों तक तंग हालातों में जीने के बाद मेरे लिए सिविल सेवा परीक्षा के लिए कोई जगह ही नहीं बच गई"।

बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ सिर्फ एक नारा

बता दें, देविका पहले चॉल में रहती थी लेकिन फिर उन्हें पुनर्वास के तहत एक अपार्टमेंट में फ्लैट दे दिया गया, लेकिन इसके लिए भी उन्हें 19 हजार रुपये का किराया चुकाना होता है। उनके पिता की भी नौकरी नहीं है और पीठ की गंभीर बीमारी के चलते भाई जयेश भी काम नहीं कर सकता। उसका कहना है कि बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ सिर्फ एक नारे से बढ़कर और कुछ भी नहीं है।

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