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2020 में लगाए गए लॉकडाउन ने महिलाओं के पोषण पर नकारात्मक प्रभाव डाला, स्टडी में हुआ खुलासा

राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने देश में महिलाओं की पोषण स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाला। अमेरिका में शोधकर्ताओं के एक समूह के अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।

देशभर में 2020 में कोरोना  को काबू करने के लिए लॉकडाउन लगया गया था। लॉकडाउन लगाने के बाद कोविड -19 पर काबू पाया गया और संक्रमण की चैन तोड़ने आसानी मिली। लॉकडाउन के दौरान देश में सभी लोग अपने-अपने घरों में थे। सिर्फ घरों से कुछ जरुरी कार्य के लिए ही लोग बाहर निकलते थे। इस दौरान राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन ने देश में महिलाओं की पोषण स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव डाला। अमेरिका में शोधकर्ताओं के एक समूह के अध्ययन में यह जानकारी सामने आई है।
कृषि एवं पोषण के लिए टाटा-कोर्नेल इंस्टीट्यूट द्वारा आर्थिक रूप से पिछड़े चार जिलों – उत्तर प्रदेश के महाराजगंज, बिहार के मुंगेर, ओडिशा के कंधमाल और कालाहांडी में किए गए अध्ययन में पाया गया कि मई 2019 की तुलना में मई 2020 में घरेलू खाद्य सामग्रियों पर खर्च और महिलाओं की आहार विविधता में गिरावट आई खासकर मांस, अंडा, सब्जी और फल जैसे गैर मुख्य खाद्यों के संदर्भ में।
अध्ययन में कहा गया कि विशेष सार्वजनिक प्रणाली वितरण (पीडीएस) के 80 प्रतिशत, प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के 50 प्रतिशत और आंगनवाड़ियों से राशन सर्वेक्षित घरों में 30 प्रतिशत तक पहुंचने के बावजूद ऐसा हुआ। अध्ययन में कहा गया, “हमारे परिणाम आर्थिक आघातों के प्रति महिलाओं की अनुपातहीन संवेदनशीलता, प्रधान अनाज केंद्रित सुरक्षा कार्यक्रम के प्रभाव और और विविध पौष्टिक खाद्य पदार्थों की पहुंच एवं उपलब्धता पर सीमित बाजार के बढ़ते साक्ष्य मुहैया कराते हैं।”
यह अध्ययन पोषण से भरपूर खाद्य पदार्थों को शामिल करने के लिए पीडीएस विविधीकरण की दिशा में नीतिगत सुधारों और आपूर्ति संबंधित बाधाओं को दूर करने के लिए बाजार में सुधार और स्वस्थ खाद्य पहुंच के लिए प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के विस्तार पर जोर डालता है। टीसीआई में शोध अर्थशास्त्री एवं टीसीआई निदेशक प्रभु पिनगली, सहायक निदेशक मैथ्यू अब्राह्म और कंसल्टेंट पायल सेठ के साथ अध्ययन की सह लेखक सौम्या गुप्ता ने कहा, “महिलाओं के आहार में वैश्विक महामारी से पहले भी विविध खाद्यों की कमी थी लेकिन कोविड-19 ने स्थिति को और खराब कर दिया।”
कॉर्नेल विश्वविद्यालय द्वारा जारी एक बयान में उन्होंने कहा, “पोषण संबंधी परिणामों पर वैश्विक महामारी के प्रभाव को देखने वाली किसी भी नीति को लैंगिक पहलु से देखना होगा जो महिलाओं द्वारा सामना की जाने वाली विशिष्ट, और अक्सर लगातार बनी रहने वाली कमजोरियों को दर्शाता है।” शोधकर्ताओं ने कहा कि नीति निर्माताओं को महिलाओं और अन्य हाशिए पर मौजूद समूहों की जरूरतों को पूरा करने के लिए सुरक्षा कार्यक्रमों को मजबूत करके महिलाओं के पोषण पर महामारी और अन्य हानिकारक घटनाओं के प्रतिकूल प्रभाव को पहचानना चाहिए। यह अध्ययन इकोनोमिया पॉलिटिका जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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