SC/ST एक्ट के नए कानून के ख़िलाफ़ दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट 20 नवंबर को सुनवाई करेगा। आज मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से कहा गया कि उनका जवाब तैयार है। शुक्रवार तक जवाब दाखिल कर देंगे। आपको बता दे कि एससी/एसटी एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी का प्रावधान फिर से जोड़ने का केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में बचाव किया।
केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर कर कहा कि एससी/एसटी एक्ट ऐतिहासिक रूप से भेदभाव के शिकार हैं इस समुदाय के साथ अब भी भेदभाव की घटनाएं होती हैं इस तबके को सामाजिक स्तर पर अधिकारों से वंचित किया जाता है। इसके साथ ही केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में कहा कि कानून के दुरुपयोग का मतलब उसे रद्द कर देना नहीं है। कानून में बदलाव का मकसद राजनीतिक लाभ नहीं है। इस मामले पर अब अगले महीने मामले पर सुनवाई होनी है।
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इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने सरकार से जवाब मांगा था उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से 7 सितंबर को हुई सुनवाई में एससी/एसटी एक्ट में हुए बदलाव पर जवाब मांगा था। जिन याचिकाओं पर कोर्ट ने नोटिस जारी किया है। उनमें एससी/एसटी एक्ट के मामलों में तुरंत गिरफ्तारी के प्रावधान का विरोध किया गया है।
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि उच्चतम न्यायालय ने इस एक्ट में तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगाई थी। लेकिन सरकार ने रद्द किए गए प्रावधानों को दोबारा जोड़ दिया है। सरकार की तरफ से कानून में हुआ बदलाव मौलिक अधिकारों का हनन करता है। इसलिए, कोर्ट इसे रद्द कर दे।
दरअसल एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के माध्यम से जोड़े गए नए कानून 2018 में नए प्रावधान 18 A के लागू होने से फिर दलितों को सताने के मामले में तत्काल गिरफ्तारी होगी और अग्रिम जमानत भी नहीं मिल पाएगी। याचिका में नए कानून को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। एससी/एसटी अत्याचार निवारण( संशोधन ) कानून 2018 को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है। पहले ही उच्चतम न्यायालय याचिकाओं पर केंद्र को नोटिस जारी कर जवाब मांग चुका है और केंद्र सरकार इस पर अपना जवाब दाखिल करेगी।
क्या है SC-ST Act ?
अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लोगों पर होने वाले अत्याचार और उनके साथ होनेवाले भेदभाव को रोकने के मकसद से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम, 1989 बनाया गया था।
जम्मू कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में इस एक्ट को लागू किया गया। इसके तहत इन लोगों को समाज में एक समान दर्जा दिलाने के लिए कई प्रावधान किए गए और इनकी हरसंभव मदद के लिए जरूरी उपाय किए गए।
इन पर होनेवाले अपराधों की सुनवाई के लिए विशेष व्यवस्था की गई ताकि ये अपनी बात खुलकर रख सके।
हाल ही में एससी/एसटी एक्ट को लेकर उबाल उस वक्त सामने आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के प्रावधान में बदलाव कर इसमें कथित तौर पर थोड़ा कमजोर बनाना चाहा।
जानिए ! आखिर क्या था मामला ?
सुप्रीम कोर्ट का ये ताज़ा फ़ैसला डॉक्टर सुभाष काशीनाथ महाजन बनाम महाराष्ट्र राज्य और एएनआर मामले में आया है। मामला महाराष्ट्र का है जहां अनुसूचित जाति के एक व्यक्ति ने अपने वरिष्ठ अधिकारियों के ख़िलाफ़ इस क़ानून के अंतर्गत मामला दर्ज कराया। गैर-अनुसूचित जाति के इन अधिकारियों ने उस व्यक्ति की वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट में उसके खिलाफ़ टिप्पणी की थी।
जब मामले की जांच कर रहे पुलिस अधिकारी ने अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए उनके वरिष्ठ अधिकारी से इजाज़त मांगी तो इजाज़त नहीं दी गई। इस पर उनके खिलाफ़ भी पुलिस में मामला दर्ज कर दिया गया।
बचाव पक्ष का कहना है कि अगर किसी अनुसूचित जाति के व्यक्ति के खिलाफ ईमानदार टिप्पणी करना अपराध हो जाएगा तो इससे काम करना मुश्किल जो जाएगा।