लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन का एक साल पूरा होने पर दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसान हुए एकत्र

केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन का एक साल पूरा होने पर शुक्रवार को दिल्ली के तीन सीमा बिन्दुओं-सिंघू, गाजीपुर और टीकरी बॉर्डर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हजारों किसान एकत्र हुए

केंद्र के तीन कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन का एक साल पूरा होने पर शुक्रवार को दिल्ली के तीन सीमा बिन्दुओं-सिंघू, गाजीपुर और टीकरी बॉर्डर पर पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के हजारों किसान एकत्र हुए। किसान संगठनों ने कहा कि आज का दिन उनके आंदोलन का एक वर्ष पूरा होने का प्रतीक है जो इतिहास में हमेशा लोगों के संघर्ष के सबसे महान क्षणों में से एक के रूप में याद किया जाएगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते तीनों कानूनों को वापस लेने की घोषणा की थी। हालांकि किसान संगठनों ने सरकार के इस कदम का स्वागत किया है, लेकिन उनका कहना है कि उनका विरोध तब तक जारी रहेगा जब तक कि फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी सहित अन्य मांगें पूरी नहीं हो जातीं।
भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने ट्वीट किया, ‘‘एक साल का लंबा संघर्ष बेमिसाल, थोड़ी खुशी थोड़ा गम, लड़ रहे हैं जीत रहे हैं, लड़ेंगे जीतेंगे। न्यूनतम समर्थन मूल्य कानून किसानों का अधिकार।’’
आंदोलन का एक साल पूरा होने पर आज दिल्ली के तीनों विरोध प्रदर्शन स्थलों पर ट्रैक्टरों में सवार होकर हजारों किसान पहुंचे। रंग-बिरंगी पगड़ी पहने ये किसान अपनी दाढ़ी को संवारते और मूंछों पर ताव देते नजर आए। वे ट्रैक्टरों पर खड़े होकर नाच रहे थे। उन्होंने एक-दूसरे को लड्डू और जलेबी तथा अन्य मिठाइयां बांटीं।
किसान संगठनों के शीर्ष निकाय संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) ने दावा किया कि कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, बिहार, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, झारखंड, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश और ओडिशा तथा अन्य राज्यों में आयोजित सभाओं, रैलियों, मार्च और चक्काजाम में लाखों किसानों ने हिस्सा लिया।
एसकेएम ने एक बयान में कहा, Òयह दिन किसानों के बारह महीने लंबे संघर्ष का प्रतीक है… किसानों की अधूरी मांगों को पूरा कराने के लिए इच्छाशक्ति और दृढ़ संकल्प के साथ संघर्ष जारी रहेगा।Ó
इसने यह भी कहा कि कृषि आंदोलन सरकार के खिलाफ लड़ने की आम लोगों की इच्छा के प्रमाण के रूप में खड़ा है, और यह लंबे समय तक महात्मा गांधी से प्रेरित शांतिपूर्ण Òसत्याग्रहÓ और स्वतंत्रता आंदोलन के उदाहरण के रूप में याद किया जाएगा।
जैसे ही किसानों का आज शहर की सीमाओं पर बड़ी संख्या में पहुंचना शुरू हुआ, दिल्ली यातायात पुलिस ने गाजियाबाद से राष्ट्रीय राजधानी की ओर जाने वाले यात्रियों को वैकल्पिक मार्ग अपनाने को कहा, क्योंकि यातायात जाम की आशंका थी।
गाजीपुर बॉर्डर पर एसकेएम की प्रभावशाली इकाई भाकियू पिछले साल नवंबर से आंदोलन का नेतृत्व कर रही है।
भाकियू के नेता सौरभ उपाध्याय ने कहा, ‘‘हमारी शनिवार को एसकेएम की बैठक है और उसके बाद ही आगे की कार्रवाई पर फैसला किया जाएगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘हमने 29 नवंबर को दिल्ली की ओर एक मार्च की योजना बनाई है, लेकिन एसकेएम शनिवार को इसके बारे में फैसला करेगा।’’
एसकेएम ने एक बयान में कहा कि किसान संगठन ने 21 नवंबर को प्रधानमंत्री को लिखे अपने पत्र में छह मांगें उठाई थीं, जिसमें सभी फसल उत्पादों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी देने और बिजली संशोधन विधेयक के मसौदे को वापस लेने की मांग भी शामिल है।
सिंघू बॉर्डर पर उत्सव जैसा माहौल नजर आया। प्रदर्शन स्थल पर ट्रैक्टरों, पंजाबी और हरियाणवी गीत-संगीत के साथ प्रदर्शनकारी किसान बेहद खुश नजर आ रहे थे।
किसानों ने इस अवसर पर लड्डू-जलेबी बांटे, भांगड़ा किया और प्रतीकात्मक मार्च निकाला तथा रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया।
ढोल नगाड़ों की थाप के बीच अपने-अपने किसान संगठनों के झंडे लिए बच्चे और बुजुर्ग, स्त्री और पुरुष Òइंकलाब जिंदाबादÓ तथा Òमजदूर किसान एकता जिंदाबादÓ के नारे लगाते नजर आए।
प्रदर्शन स्थल पर आज वैसी ही भीड़ दिखी जैसी कि आंदोलन के शुरू के दिनों में हुआ करती थी। इन लोगों में किसान परिवारों से संबंध रखने वाले व्यवसायी, वकील और शिक्षक भी शामिल थे।
पटियाला के सरेंदर सिंह (50) ने प्रदर्शन स्थल पर भीड़ का प्रबंधन करने के लिए छह महीने बिताए हैं। उन्होंने कहा, Òयह एक विशेष दिन है। यह किसी त्योहार की तरह है। लंबे समय के बाद इतनी बड़ी संख्या में लोग यहां एकत्र हुए हैं।Ó
आज के विशेष दिन बनाए गए विशेष नाश्ते के बारे में उन्होंने कहा Òआज जलेबी, पकौड़े, खीर और छोले पूड़ी बने हैं।Ó
पंजाब के बरनाला निवासी लखन सिंह (45) ने इस साल की शुरुआत में अपने पिता को खो दिया था।
लखन ने कहा, Òअच्छा होता कि आज वह यहां होते। लेकिन मैं जानता हूं कि उनकी आत्मा को अब शांति मिलेगी।Ó
पटियाला के मावी गाँव निवासी भगवान सिंह (43) ने विरोध के सातवें महीने में अपने दोस्त नज़र सिंह (35) को खो दिया था, जिन्हें याद करते हुए वह फूट-फूटकर रो पड़े।
उन्होंने कहा, Òमेरा दोस्त, अपने परिवार का एकमात्र कमाने वाला व्यक्ति था, जिसके परिवार में तीन छोटी बेटियां और बुजुर्ग माता-पिता हैं। हमें उसकी बहुत कमी खलती है।Ó
पिछले साल दिसंबर में सिंघू बॉर्डर पहुंचे कृपाल सिंह (57) ने अपने दाहिने पैर में चोट का निशान दिखाया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि यह पुलिस की लाठी से लगा था।
उन्होंने कहा कि किसानों को रोकने के लिए तमाम बाधाएं उत्पन्न की गईं, लेकिन फिर भी किसान नहीं रुके।
लाउडस्पीकर पर किसान नेताओं और कार्यकर्ताओं ने लोगों से कहा कि अभी पूरी तरह संतुष्ट होने का वक्त नहीं आया है।
किसान नेता शिव कुमार कक्का ने आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले 732 किसानों के परिवारों को मुआवजा दिए जाने और एमएसपी कानून की मांग को दोहराते हुए कहा, Òजीत का जश्न मनाएं, लेकिन इसी से संतुष्ट न हों। हम तब तक एक इंच भी नहीं हिलेंगे जब तक कि हमारी सभी मांगें पूरी नहीं हो जातीं।Ó
किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले ही कृषि कानूनों को रद्द कर दिया होता तो यहां 700 से ज्यादा लोग जिंदा होते।
टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर भी त्योहार जैसा ही माहौल था।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × five =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।