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देश में पिछले साल नवंबर तक 9.27 लाख गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की हुई पहचान, UP और बिहार में हालात चिंताजनक

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 9.2 लाख से ज्यादा बच्चे ‘गंभीर रूप से कुपोषित’ हैं, जिनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में और फिर बिहार में हैं।

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में 9.2 लाख से ज्यादा बच्चे ‘गंभीर रूप से कुपोषित’ हैं, जिनमें सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश में और फिर बिहार में हैं। ये आंकड़े उन चिंताओं पर खास तौर पर जोर डालते हैं कि कोविड वैश्विक महामारी गरीब से गरीब तबके के लोगों के बीच स्वास्थ्य एवं पोषण के संकट को और बढ़ा सकती है।
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने आरटीआई के तहत पूछे गए सवाल के जवाब में बताया कि पिछले साल नवंबर तक देश में छह महीने से छह साल तक के करीब 9,27,606 ‘गंभीर रूप से कुपोषित’ बच्चों की पहचान की गई। मंत्रालय की ओर से साझा किए गए आंकड़ों के मुताबिक इनमें से, सबसे ज्यादा 3,98,359 बच्चों की उत्तर प्रदेश में और 2,79,427 की बिहार में पहचान की गई। लद्दाख, लक्षद्वीप, नगालैंड, मणिपुर और मध्य प्रदेश में एक भी गंभीर रूप से कुपोषित बच्चा नहीं मिला है।
सूचना के अधिकार कानून (आरटीआई) के जवाब के मुताबिक लद्दाख के अलावा, देश के सबसे बड़े राज्यों में से एक मध्यप्रदेश सहित अन्य चार में से किसी आंगनवाड़ी केंद्र ने मामले पर कोई जानकारी नहीं दी। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ‘गंभीर कुपोषण’ (एसएएम) को लंबाई के अनुपात में बहुत कम वजन हो या बांह के मध्य के ऊपरी हिस्से की परिधि 115 मिलीमीटर से कम हो या पोषक तत्वों की कमी के कारण होने वाली सूजन के माध्यम से परिभाषित करता है। 
गंभीर कुपोषण के शिकार बच्चों का वजन उनकी लंबाई के हिसाब से बहुत कम होता है और प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होने की वजह से किसी बीमारी से उनके मरने की आशंका नौ गुना ज्यादा होती है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने पिछले साल सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान करने को कहा था ताकि उन्हें जल्द से जल्द अस्पतालों में भर्ती कराया जा सके। 9,27,006 बच्चों का यह आंकड़ा उस कदम के बाद आया है।
चिंता की बात यह है कि ये संख्या न सिर्फ कम आंकी गई हो सकती है बल्कि वैश्विक महामारी के मद्देनजर और बढ़ सकती है, वो भी उस भय के साथ कि आशंकित तीसरी लहर अन्य की तुलना में बच्चों को ज्यादा प्रभावित करेगी। बाल अधिकारों के लिए ‘हक सेंटर’ की सह संस्थापक इनाक्षी गांगुली ने कहा, “बेरोजगारी बढ़ी है, आर्थिक संकट बढ़ा है, जिसका भुखमरी पर भी असर होगा और जब भुखमरी होगी तो कुपोषण भी होगा। सरकार के पास एक स्पष्ट प्रोटोकॉल है और उन्हें उसे बढ़ाने की जरूरत है।’’
उत्तर प्रदेश और बिहार गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों के मामलों में सबसे ऊपर है और वहां बच्चों की संख्या भी देश में सबसे अधिक है। 2011 के जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक उत्तर प्रदेश में 0-6 साल के 2.97 करोड़ बच्चे हैं जबकि बिहार में ऐसे बच्चों की संख्या 1.85 करोड़ है।
आरटीआई जवाब के मुताबिक, महाराष्ट्र में गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की संख्या 70,665 है। इसके बाद गुजरात में 45,749, छत्तीसगढ़ में 37,249, ओडिशा में 15,595, तमिलनाडु में 12,489, झारखंड में 12,059, आंध्र प्रदेश में 11,201, तेलंगाना में 9,045, असम में 7,218, कर्नाटक में 6,899, केरल में 6,188 और राजस्थान में 5,732 है। गंभीर रूप से कुपोषित बच्चों की पहचान देश भर के करीब 10 लाख आंगनवाड़ी केंद्रों की ओर से की गई है। गांगुली ने बच्चों की पोषण स्थिति को सुधारने में आंगनवाड़ी केंद्रों की भूमिका पर जोर दिया है।

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