देश की शीर्ष अदालत, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को राजद्रोह कानून को लेकर बड़ा फैसला सुनाया। देशद्रोह कानून को लेकर उच्चतम न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले के बाद तमाम प्रतिक्रियाएं आनी शुरू हो गई है। सुप्रीम फैसले के तुरंत बाद केंद्र की मोदी सरकार में केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि वह "अदालत और इसकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं", लेकिन एक "लक्ष्मण रेखा" है जिसे पार नहीं किया जा सकता है।
फिलहाल देशद्रोह कानून पर रहेगी रोक
शीर्ष न्यायालय के फैसले के बाद देशद्रोह कानून पर फिलहाल रोक लगी रहेगी, क्योंकि फिलहाल मोदी सरकार इस पर समीक्षा करेंगी। तब तक देशद्रोह के आरोप में जेल में बंद आरोपी जमानत के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने आज केंद्र के इस तर्क को खारिज कर दिया कि अदालतों में इस तरह के मुकदमे जारी रहने चाहिए, क्योंकि आतंकवाद जैसे आरोप शामिल हो सकते हैं।
हमने अपनी स्थिति बहुत स्पष्ट कर दी है-किरेन रिजिजू
कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने संवाददाताओं से कहा, "हमने अपनी स्थिति बहुत स्पष्ट कर दी है और अपने पीएम नरेंद्र मोदी के इरादे के बारे में अदालत को सूचित किया है। हम अदालत और इसकी स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं। लेकिन एक 'लक्ष्मण रेखा' है जिसका सम्मान सभी अंगों द्वारा किया जाना चाहिए। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम भारतीय संविधान के प्रावधानों के साथ-साथ मौजूदा कानूनों का सम्मान करें।"
अदालत को सरकार, विधायिका का सम्मान करना चाहिए
रिजिजू ने कहा, "हम एक-दूसरे का सम्मान करते हैं। अदालत को सरकार, विधायिका का सम्मान करना चाहिए, इसलिए सरकार को भी अदालत का सम्मान करना चाहिए। हमारे पास सीमा का स्पष्ट सीमांकन है और लक्ष्मण रेखा को किसी के द्वारा पार नहीं किया जाना चाहिए।" हालांकि किरेन रिजिजू इस सवाल का जवाब देने से बच गए कि जब उनसे पूछा गया कि क्या सुप्रीम कोर्ट का फैसला उनकी नजर में गलत है?
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा-
ज्ञात हो कि इससे पहले मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अध्यक्षता वाली न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि जब तक केंद्र द्वारा देशद्रोह के प्रावधान की समीक्षा पूरी नहीं हो जाती, तब तक सरकारों को देशद्रोह के प्रावधान का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। पीठ ने कहा कि देशद्रोह के प्रावधान के तहत कोई नई FIR दर्ज नहीं की जानी चाहिए और पहले से ही जेल में बंद लोग राहत के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटा सकते हैं।