स्वास्थ्य क्षेत्र जलवायु परिवर्तन की समस्या का एक बड़ा हिस्सा है, इसलिए हमें अपने हिस्से को कम करने के तरीके खोजने के लिए मिलकर काम करने की आवश्यकता है। केंद्रीय मंत्री पुरुषोत्तम रूपाला ने बृहस्पतिवार को इस जरूरत को रेखांकित किया कि पशु स्वास्थ्य समेत संपूर्ण स्वास्थ्य क्षेत्र को जलवायु परिवर्तन में अपनी हिस्सेदारी को कम करना चाहिए और स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों को रोकने के लिए पशुओं से जुड़े रोगों की निगरानी सुदृढ़ करनी चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय के बयान के अनुसार केंद्रीय मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री रूपाला जी-20 स्वास्थ्य कार्य समूह की दूसरी बैठक से जुड़े एक कार्यक्रम- ‘‘जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य की चुनौतियों पर ध्यान देना: एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’’ को संबोधित कर रहे थे।
संबंध को मान्यता प्रदान करता है
इस कार्यक्रम का आयोजन एशियाई विकास बैंक व स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने किया। इसका उद्देश्य पेरिस समझौते के लक्ष्यों के साथ स्वास्थ्य क्षेत्र के विकास को समन्वित करने और ‘एक स्वास्थ्य’ दृष्टिकोण, जो मानव, पशु व पर्यावरणीय स्वास्थ्य के परस्पर संबंध को मान्यता प्रदान करता है, के तहत जलवायु-तटस्थ और लचीली स्वास्थ्य प्रणालियों का निर्माण करना है। इस कार्यक्रम में भारत के जी20 शेरपा अमिताभ कांत भी उपस्थित थे।
आपसी जुड़ाव पर जोर दिया
अमिताभ कांत ने जलवायु परिवर्तन, स्वास्थ्य सेवा और गरीबी जैसी विभिन्न चुनौतियों के आपसी जुड़ाव पर जोर दिया। उन्होंने रेखांकित किया कि कोविड-19 महामारी ने दिखाया है कि कैसे ‘वैश्विक दक्षिण’ (दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका, एशिया व ओशिनिया) के संचारी रोगों व संसाधनों की कमी के बोझ के कारण अधिक असुरक्षित होने के साथ स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन आपस में जुड़े हुए हैं।
टेली-परामर्श स्थायी समाधान हैं
कांत ने आगे कहा कि भारत ने स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है और टेलीमेडिसिन व टेली-परामर्श जैसी डिजिटल पहलों के साथ जलवायु के लिहाज से जुझारू स्वास्थ्य सेवा मॉडल को लेकर स्थायी समाधान के साथ दुनिया की फार्मेसी बन गया है। उन्होंने कहा, ‘‘एक जलवायु अनुकूल स्वास्थ्य सेवा मॉडल के लिए भारत की डिजिटल पहल जैसे कि टेलीमेडिसिन और टेली-परामर्श स्थायी समाधान हैं।’’