देश और दुनिया की तमाम खबरों के लिए हमारा YouTube Channel 'PUNJAB KESARI' को अभी subscribe करें। आप हमें FACEBOOK, INSTAGRAM और TWITTER पर भी फॉलो कर सकते हैं।
Delhi: हाल के दिनों में भारत में समानता के मुद्दे पर कई देशों के बयान सामने आए। इसी मुद्दे को लेकर भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने बड़ा बयान दिया है।
इन दिनों दुनिया भर के देशों से भारत को समानता के मुद्दे पर नसीहत दी जा रही है। इसी बहस के बीच उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ऐसे तमाम बयानों को खारिज किया है। वे मसूरी स्थित लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी में एक कार्यक्रम को सम्बोधित कर रहे थे। इस दौरान उन्होंने कहा की भारत को समानता के मुद्दे पर इस ग्रह पर किसी से उपदेश की जरूरत नहीं है। हम हमेशा समानता में विश्वास करते हैं।
उपराष्ट्रपति ने कहा,'जो देश भारत पर इस तरह के आरोप लगा रहे हैं, उन्हें अपने भीतर झांकने की जरूरत है। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि कुछ देशों में अभी तक कोई महिला राष्ट्रपति नहीं है, जबकि हमारे यहां ब्रिटेन से भी पहले एक महिला प्रधानमंत्री थी। उन्होंने आगे कहा कि दुनिया के कई देशों में उच्चतम न्यायालय ने बिना महिला जज के 200 साल पूरे कर लिए, लेकिन हमारे यहां हैं।
उन्होंने कहा, 'नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) को लेकर झूठ फैलाया गया। सीएए का कानून किसी भी भारतीय नागरिक से उसकी नागरिकता नहीं छीनता है और न ही पहले की तरह किसी को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से रोकता है। उन्होंने कहा कि सीएए का मुख्य उद्देश्य भारत के पड़ोसी देशों में प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के लिए भारतीय नागरिकता देने के लिए है। उन्होंने कहा कि हमारे पड़ोसी तीन देशों पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में उनकी धार्मिक प्रताड़ना के शिकार वहां के अल्पसंख्यकों को यह राहत प्रदान करता है, ऐसे में यह कानून गलत कैसे हो सकता है?"
उन्होंने कहा कि सीएए उन लोगों पर लागू होता है, जो 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत आए थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि यह कानून उन देशों से अल्पसंख्यकों को बुलाने के लिए नहीं है, बल्कि जो इससे पहले से यहां आ गए हैं, उनके लिए है।
उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि इस तरह के तथ्यात्मक रूप से गलत प्रचार, विचार या फिर अस्थिर राष्ट्र-विरोधी बयानों का खंडन करें। इसके साथ जो हमारे गौरवशाली और मजबूत संवैधानिक निकायों को कलंकित करने की कोशिश कर रहे हैं, उनका विरोध करें। उन्होंने आगे कहा कि हाल के वर्षों में शासन व्यवस्था बेहतर हुई है, लोकतांत्रिक मूल्य गहरे हुए हैं। क्योंकि, कानून के अनुसार समानता के सिद्धांत को बेहतर तरीके से लागू किया जा रहा है और भ्रष्टाचार पर भी लगाम कसी जा रही है।
पहले कुछ विशेषाधिकार प्राप्त वंशावली को यह लगता था कि वे कानूनी प्रक्रिया से बचे हुए हैं,और कानून उन तक नहीं पहुंच सकता है। उन्होंने युवा अधिकारियों की सराहना करते हुए कहा कि कानून के समक्ष सभी समान हैं, पहले के प्रशासन में भ्रष्टाचार को नसों में खून की तरह बहता था।
उपराष्ट्रपति ने आगे कहा कि देश को निराशा से बाहर निकाला गया है। भारत आशा और संभावना की भूमि बन गया है। पूरे देश में उत्साह का माहौल है। उन्होंने जोर देकर कहा कि भारत अब सोता हुआ विशाल देश नहीं, संभावनाओं से भरा और गतिमान देश बन गया है।
उपराष्ट्रपति का अहम बयान ऐसे समय में आया है, जब जर्मनी और सयुंक्त राष्ट्र (UN) समेत ने भारत की राजनैतिक स्थिति को रेखांकित करते हुए चिंता जताया है।