सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से सवाल किया कि क्या मालवाहक वाहनों से अलग अन्य चार पहिया वाहनों और निजी कारों के लिए पेट्रोल और डीजल को एक ही दाम पर बेचने की व्यवस्था की जा सकती है। दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण पर एक जनहित याचिका की सुनवाई कर रही जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की पीठ ने केंद्र की तरफ से उपस्थित वकील को इस बात पर निर्देश लेने को कहा।
हालांकि केंद्र सरकार पहले ही दामों को एक करने को आर्थिक रूप से व्यवहारिक नहीं होने और महंगाई को बढ़ावा देने वाला साबित होने की बात कह चुकी है। मामले की अगली सुनवाई 23 जुलाई को होगी। इस मामले में न्यायालय की सहायता के लिए न्यायमित्र की भूमिका निभा रहीं एडवोकेट अपराजिता सिंह ने पीठ को बताया कि ईपीसीए की एक रिपोर्ट में शीर्ष न्यायालय की तरफ से डीजल वाहनों की खरीद पर लगाए गए एन्वायरमेंट कंपनसेशन चार्ज (ईसीसी) से जुटाए गए फंड के दुरुपयोग की तरफ इशारा किया गया है। इस पर पीठ ने कहा, भारतीय ऑटोमोबाइल निर्माता सोसाइटी (सियाम) का दावा है कि उनके डीजल वाहन प्रदूषण नहीं फैलाते हैं।
न्यायमित्र ने पेरिस की तर्ज पर निजी व मालवाहक डीजल वाहनों में अंतर के लिए कलर कोड व्यवस्था लागू करने की सलाह दी। पीठ ने एक मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि जर्मनी अपने यहां डीजल वाहनों के उपयोग को प्रतिबंधित करने पर विचार कर रहा है, जबकि अन्य यूरोपियन देश नाइट्रोजन ऑक्साइड प्रदूषण मानक को नए सिरे से तय करने का प्रयास कर रहे हैं। वाहन निर्माताओं के वकील ने दावा किया कि डीजल वाहनों की बिक्री में करीब 24 फीसदी कमी आई है।
अगस्त 2016 को 47.5 फीसदी डीजल वाहन बिक्री थी, जो अब 23 फीसदी पर आ चुकी है। वकील ने अप्रैल 2019 से दिल्ली-एनसीआर के 23 में से 17 जिलों में शुरू होने जा रही बीएस-6 मानक के तेल की बिक्री से डीजल प्रदूषण समस्या सुलझने का दावा किया। पीठ ने देश में इलेक्ट्रिक वाहनों के उपयोग को बढ़ाए जाने के बारे में पूछा तो एक वकील ने बताया कि दिल्ली सरकार ने करीब 1000 इलेक्ट्रिक सिटी बसों की खरीद का प्रस्ताव बनाया है, जबकि देश के विभिन्न हिस्सों में पहले ही करीब 1000 इलेक्ट्रिक वाहन चल रहे हैं। पीठ ने हाइड्रोजन फ्यूल सेल से चलने वाले वाहनों की व्यवहारिकता परखने की सलाह दी।