लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

लोकसभा चुनाव पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

जब प्रधानमंत्री मोदी हुए मिथिला पेंटिंग के मुरीद

मधुबनी पेंटिंग्स को आधिकारिक पहचान तब मिली, जब 1969 में सीता देवी को बिहार सरकार ने मधुबनी पेंटिंग के लिए सम्मानित किया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हाल ही में जब अपने नेपाल दौरे के दौरान जनकपुर गए थे तो मिथिला पेंटिंग वाले दुपट्टे के साथ उनकी तस्वीर सोशल मीडिया पर काफी ट्रेंड किया था। राजनीतिक पंडित इस तस्वीर का अलग निहितार्थ लगा रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा का नैया पार लगाने में श्रीराम की अहम भूमिका रही है। प्रधानमंत्री मोदी एक बार फिर 2019 के लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सीता-राम के सहारे वैतरनी पार करना चाहते हैं। मधुबनी पेंटिंग मिथिला की एक फोक पेंटिंग है। इसमें मिथिलांचल की सांस्कृतिक विशेषता को कैनवास पर उतारा जाता है। कहा जाता है कि मधुबनी का अस्तित्व रामायण काल में भी था। एक किंवदंती है कि इसी वन में राम और सीता ने पहली बार एक-दूसरे को देखा था। मधुबनी पेंटिंग की शुरुआत रामायण काल में ही हुई थी। उस समय मिथिला के राजा जनक थे। राम के धनुष तोड़ने के बाद जनक की बेटी सीता की शादी राम से तय हुई थी। राम के पिता अयोध्या के राजा थे। मिथिला में अयोध्या से बारात आने वाली थी। जनक ने सोचा, शादी ऐसी होनी चाहिए कि लोग याद करें। उन्होंने जनता को आदेश दिया कि सभी लोग अपने घरों की दीवारों और आंगन में पेंटिंग बनाएं, जिसमें मिथिला की संस्कृति की झलक हो। इससे अयोध्या से आए बारातियों को मिथिला की महान संस्कृति का पता चलेगा।

मधुबनी पेंटिंग मिथिलांचल का मेन फोक पेंटिंग है। शुरुआत में ये पेंटिंग्स आंगन और दीवारों पर रंगोली की तरह बनाई जाती थी। फिर धीरे-धीरे ये कपड़ों, दीवारों और कागजों पर उतर आईं। मिथिला की महिलाओं ़द्वारा शुरू की गईं इन फोक पेंटिंग्स को पुरुषों ने भी अपना लिया। शुरू में ये पेंटिंग्स मिट्टी से लीपी झोपड़ियों में देखने को मिलती थीं। लेकिन अब इन्हें कपड़े या पेपर के कैनवस पर बनाया जाता है।

इन पेंटिंग्स में खासतौर पर देवी-देवताओं व लोगों की आम जिंदगी और प्रकृति से जुड़ी आकृतियां होती हैं। इनमें आपको सूरज, चंद्रमा, पनघट और शादी जैसे नजारे आम तौर पर देखने को मिलेंगे। मधुबनी पेंटिंग्स दो तरह की होती हैं- एक, भित्ति पेंटिंग जो घर की दीवारों (मैथिली में दीवारों को भित्ति भी कहते हैं) पर बनाई जाती है और दूसरी अरिपन (अल्पना) जो आंगन में बनाई जाती है। इन पेंटिंग्स को माचिस की तीली और बांस की कलम से बनाया जाता है। चटख रंगों का खूब इस्तेमाल होता है- जैसे गहरा लाल, हरा, नीला और काला चटख रंगों के लिए अलग अलग रंगों के फूलों और उनकी पत्तियों को तोड़कर उन्हें पीसा जाता है, फिर उन्हें बबूल के पेड़ की गोंद और दूध के साथ घोला जाता है। पेंटिंग्स में कुछ हल्के रंग भी प्रयोग किए जाते हैं, जैसे- पीला, गुलाबी और नींबू रंग। खास बात ये है कि ये रंग भी हल्दी केले के पत्ते और गाय के गोबर जैसी चीजों से घर में ही बनाए जाते हैं। लाल रंग के लिए पीपल की छाल प्रयोग में लाए जाते हैं।

आमतौर पर ये पेंटिंग्स घर में पूजाघर, कोहबर घर (नवदंपति का कमरा) और किसी उत्सव पर घर की दीवार पर बनाई जाती है। हालांकि अब इंटरनेशनल मार्केट में इसकी मांग देखते हुए कलाकार आर्टिफिशियल पेंट्स भी प्रयोग करने लगे हैं और लेटेस्ट कैनवस पर बनाने लगे हैं। भरनी, कचनी, तांत्रिक, गोदना और कोहबर ये मधुबनी पेंटिंग्स के पांच स्टाइल हैं। भरनी कचनी और तांत्रिक पेंटिंग स्टाइल के धार्मिक तरीके हैं। इसकी शुरूआत मधुबनी की ब्राह्मण और कायस्थ समाज की महिलाओं ने की थी। सन् 1960 के दशक में दुसाध समुदाय की दलित महिलाओं ने भी इन पेंटिंग्स को नएअंदाज में बनाना शुरू किया। उनकी पेंटिंग में राजा सलहेस की झलक दिखाई देती है।

दुसाध समाज के लोग राजा सलहेस को अपना कुल देवता मानते हैं। हालांकि आज मधुबनी पेंटिंग्स पूरी दुनिया में धूम मचा रही है और जाति के दायरे से ऊपर उठ चुकी है। अब आर्टिस्ट इंटरनेशनल मार्केट का रुख देखते हुए आर्ट में विविध प्रयोग भी कर रहे हैं। इसका सकारात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। मधुबनी पेंटिंग्स मिथिला में हजारों सालों से चली आ रही है, पर 1934 से पहले ये सिर्फ गांवों की एक लोककला थी। सन् 1934 में मिथिलांचल में बड़ा भूकंप आया था, जिससे वहांकाफी नुकसान हुआ।

मधुबनी के ब्रिटिश ऑफिसर विलियम आर्चर जब भूकंप से हुए नुकसान को देखने गए तो उन्होंने ये पेंटिंग्स देखीं जो उनके लिए नई और अनोखी थीं। उन्होंने बताया कि भूकंप से गिर चुके घरों की टूटी दीवार पर जो पेंटिंग्स हैं वो मीरो और पिकासो जैसे मॉडर्न कलाकार की पेंटिंग्स जैसी थी, फिर उन्होंने इन पेंटिंग्स कीब्लैक एंड वाइट तस्वीरें निकलीं जो मधुबनी पेंटिंग्स की अब तक की सबसे पुरानी तस्वीरें मानी जाती हैं। उन्होंने 1949 में मार्ग के नाम से एक लेख लिखा था, जिसमें मधुबनी पेंटिंग की खासियत बताई थी। इसके बाद पूरी दुनिया को मधुबनी पेंटिंग की खूबसूरती का अहसास हुआ।

सन् 1977 में मोजर और रेमंड ली ओवेंस उस समय के एक फुलब्राइट स्कॉलर के फाइनेंशियल सपोर्ट से मधुबनी के जितबारपुर में मास्टर क्राफ्ट्समेन असोसिएशन ऑफ मिथिला की स्थापना की गई। इसके बाद जितबारपुर मधुबनी पेंटिंग का हब बन गया। इससे मधुबनी पेंटिंग के कलाकारों को बहुत फायदा हुआ। उनकी कला को सही कीमत मिलने लगी फोर्ड फाउंडेशन का भी मधुबनी पेंटिंग के साथ लंबा असोसिएशन रहा है अब तो बहुत से अंतर्राष्ट्रीय ऑगर्नाइजेशन मधुबनी पेंटिंग्स को अंतर्राष्ट्रीय बाजार में पहुंचा रहे हैं। मधुबनी पेंटिंग्स को आधिकारिक पहचान तब मिली, जब 1969 में सीता देवी को बिहार सरकार ने मधुबनी पेंटिंग के लिए सम्मानित किया था।

1975 में मधुबनी पेंटिंग के लिए जगदंबा देवी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। सीता देवी को भी 1984 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया। बाद में सीता को मधुबनी पेंटिंग के लिए बिहाररत्न और शिल्पगुरु सम्मान से भी सम्मानित किया गया। वर्ष 2011 में महासुंदरी देवी को भी मधुबनी पेंटिंग के लिए पद्म श्री से नवाजा गया और 2017 में बउआ देवी को पद्मश्री से सम्मानित किया गया है। इनके अलावा भी कई महिलाओं को मधुबनी पेंटिंग्स के लिए सम्मानित किया गया। पिछले साल जब पीएम मोदी जर्मनी दौरे पर थे तो हनोवर के मेयर स्टीवन शोस्टॉक से मुलाकात के दौरान उन्होंने शोस्टॉक को बउआ देवी का बनाया हुआ मधुबनी पेंटिंग उन्हें गिफ्ट किया था।  (लेखक ब्रिटिश लिंग्वा के प्रबंध निदेशक एवं मिथिलालोक फाउंडेशन के अध्यक्ष हैं)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

1 × one =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।