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जानें क्या बला है ब्लैक फंगस? कैसे, क्यों और किसे होती है ये बिमारी

म्यूकरमाइकोसिस एक तरह का दुर्लभ फंगल इंफेक्शन है जो शरीर में बहुत तेजी से फैलता है। आंख नाक-आंख के बाद ब्लैक फंगस सीधा ब्रेन पर असर करता है। ये फंगस इतना घातक है कि इससे संक्रमित मरीजों की मौत तक हो रही है।

देश में कोरोना महामारी की दूसरी लहर के बीच म्यूकरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस के मामले सामने आ रहे हैं। म्यूकरमाइकोसिस एक तरह का दुर्लभ फंगल इंफेक्शन है जो शरीर में बहुत तेजी से फैलता है। आंख नाक-आंख के बाद ब्लैक फंगस सीधा ब्रेन पर असर करता है। ये फंगस इतना घातक है कि इससे संक्रमित मरीजों की मौत तक हो रही है। 
क्या है ब्लैक फंगस
ब्लैक फंगस का साइंटिफिक नाम म्यूकोरमाइकोसिस है। ये इंफेक्शन शरीर में बहुत तेजी से फैलता है। इसको ग्रो करने के लिए शरीर में नमी चाहिए होती है। ब्लैक फंगस नाक से शुरू होकर आपकी आंखों और ब्रेन तक पहुंचाता है। जो बाद में जानलेवा तक साबित हो सकता है। 
ब्लैक फंगस के लक्षण 
– सिर दर्द
– चेहरे पर दर्द
– नाक बंद
– आंखों की रोशनी कम होना या फिर दर्द होना
– मानसिक स्थिति में बदलाव या फिर भ्रम पैदा होना
– गाल और आंखों में सूजन
– दांत दर्द
– दांतों का ढीला होना
– नाक में काली पपड़ी बनना
– शरीर पर काले चकते बनना 
किन लोगों को हैं म्यूकोरमाइकोसिस से खतरा
ब्लैक फंगस के ज्यादातर मामले डायबिटीज से ग्रस्त कोरोना संक्रमित मरीजों में सामने आ रहे हैं। इसलिए डायबिटीज वाले मरीजों को इसका सबसे अधिक खतरा है। कैंसर के मरीजों को भी इस दौरान संभल कर रहना होगा। साथ ही जिन लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immunity_ कमजोर होती है, उन्हें भी इस बीमारी का खतरा रहता है।
नाक-आंख के बाद सीधा ब्रेन पर असर करता है ब्लैक फंगस 
डॉ. राममनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के मेडिसिन विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर एवं चिकित्सा अधीक्षक विक्रम सिंह ने बताया ” ब्लैक फंगस बहुत ज्यादा खतरनाक है। फंगस ज्यादा गंभीर होने से मृत्युदर बढ़ने के चांस है। इसके बचाव के लिए मरीज को बहुत ज्यादा मात्रा में स्टेरॉयड न दिया जाए। एंटीबायोटिक का एप्रोकिएट प्रयोग हो। ऑक्सीजन के प्यूरीफायर साफ-सुथरे हों।
उन्होंने बताया कि कोरोना संक्रमित डायबिटीज रोगी को अस्पताल में भर्ती होते समय शुगर नियंत्रित होनी चाहिए। यह फंगस नमी के कारण होता है। नमी वाले स्थान से मनुष्य के शरीर में पहुंच जाता है। यह नाक, आंख, गला को ज्यादा प्रभावित है। इसके बचाव के लिए एंटी फंगल दवाओं को प्रयोग किया जा सकता है। उसे सर्जरी से ठीक कर सकते हैं। हालांकि इसका इलाज कठिन है। यह कोरोना से भिन्न है। नाक-आंख के बीच के भाग में असर करता है। फिर यह सीधा ब्रेन में असर करता है।”
प्राथमिक अवस्था में फंगल इन्फेक्शन को पकड़ पाना मुश्किल
इंडियन मेडिकल एसोसिएषन (आईएमए) के सचिव और वरिष्ठ चेस्ट फिजीशियन डा.वीएन अग्रवाल ने बताया कि इस फंगल इन्फेक्शन को ग्रो करने के लिए शरीर में नमी चाहिए। नाक, गला, आंख में नमी ज्यादा होती है। यहां फंगस बढ़ने के ज्यादा चांस रहते है। रोग व दवाओं के कारण शरीर में कमजोरी होती है। 
उन्होंने कोविड मरीज जिन पर स्टेरॉयड ज्यादा प्रयोग किया गया है। वह इस रोग के कारण ज्यादा सेंसटिव हो गये है। क्योंकि यह फंगस शरीर में पहुंच गया तो ग्रो कर जाता है। इसे अर्ली स्टेज (प्राथमिक अवस्था) में पकड़ पाना मुश्किल है। अगर समय से पकड़ आ गया तो दवा से खत्म हो सकता है। देर होनें पर यह आंख, नाक, और ब्रेन को पकड़ लेता है। जिस स्थान को पकड़ता है उस स्थान से चमड़े को खुरच-खुरच कर निकालना पड़ता है। बड़ा ऑप्रेशन होता है। 

आंखो में फंगस ज्यादा फैलने से आंख भी निकालनी पड़ती है। यह फंगस भारत में पहले ज्यादा नहीं देखी जा रही है। इसलिए ज्यादा जागरूकता नहीं थी। लेकिन कोविड मरीजों में इसके मामले बढ़े हैं। इसलिए जागरूकता बढ़ी है। अगर किसी में लक्षण दिखे तो शीघ्र नाक, कान और गाला (ईएनटी) के विशेषज्ञ से मिलकर मरीज को अपना इलाज करवाना चाहिए। शुरूआती समय में इलाज कराने पर ठीक हो सकता है।
क्या है इससे बचाव के उपाए
कोरोना वायरस संक्रमण के बाद इम्युनिटी कमजोर होने पर यह ब्लैक फंगस तेजी से शरीर को जकड़ता है। समय रहते इन्फेक्शन का इलाज़ ही इससे बचाव का सही उपाए है। एक्सपर्ट्स के अनुसार इससे बचाव के लिए संतुलित भोजन, विटामिन, प्रोटीन भरपूर मात्रा में लें।” मरीजों को हाइपरग्लाइसीमिया को कंट्रोल करना होगा। कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके लोगों को अपना ब्लड शुगर टेस्ट करते रहना होगा। स्टेरॉयड का उपयोग सही तरीके से करें-सही समय, सही खुराक और अवधि के साथ एंटीबायोटिक/एंटीफंगल का प्रयोग भी ठीक ढंग से सोच-समझकर करना होगा। 

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