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क्या आरक्षण देते रहने से हमारे देश का उद्धार संभव हो सकेगा : सुमित्रा महाजन

सुमित्रा महाजन ने कहा कि सामूहिक भोजन में सब को निमंत्रण देकर और जाति के आधार पर बैठाया जाएगा तो उस सामूहिक भोजन का कोई मतलब नहीं है।

लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने आरक्षण को लेकर बोला सुमित्रा महाजन ने कहा कि क्या केवल आरक्षण देते रहने से हमारे देश का उद्धार संभव हो सकेगा? उन्होंने कहा कि वे आरक्षण की विरोधी नहीं हैं लेकिन ये सोचना जरूरी है। रांची में आयोजित लोकमंथन कार्यक्रम के समापन समारोह में शामिल होने आईं लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने इस मसले पर खुलकर अपनी बात रखी। मंच से अपनी बात रखते हुए सुमित्रा महाजन ने कहा कि डॉ. भीमराव अंबेडकर ने आरक्षण सिर्फ 10 वर्ष के लिए लागू करने की बात कही थी लेकिन यहां हर 10 वर्ष बाद उसे फिर से 10 वर्ष या 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया जा रहा है। केवल आरक्षण से देश का उद्धार नहीं होने वाला।

सुमित्रा महाजन ने पूछा कि क्या केवल आरक्षण देने से देश का उत्थान हो सकेगा? आरक्षण का लाभ लेने वाले लोगों को आत्मचिंतन करना चाहिए कि खुद के विकास हो जाने के बाद उन्होंने समाज को क्या कुछ दिया। हालांकि यह कहते हुए सुमित्रा महाजन ने यह भी साफ कहा कि वह आरक्षण की विरोधी नहीं हैउन्होंने कहा, ”जब हम सामाजिक समरसता की बात हम करते हैं, तब हमें आत्मचिंतन और आत्मनिरीक्षण करना चाहिए। जिन्हें आरक्षण का लाभ मिला उन्हें भी और जिनको नहीं मिला उन्हें भी। आज हमारी सामाजिक स्थिति क्या है। हो सकता है मुझे आरक्षण मिला। मैं उस समाज से आ रही हूं और मैं अगर जीवन में कुछ बन गई तो मुझे सोचना चाहिए मैंने समाज को बांटा कितना है।

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मैंने समाज को साथ में लेकर कितना सहारा दिया है। यह सोचना बहुत जरूरी है और यह सामूहिक रूप से सोचना पड़ेगा। जब हम समाज और प्रजातंत्र की बात करते हैं तो सोचना पड़ेगा। क्या मेरा समाज पिछड़ तो नहीं गया। मैं तो आगे बढ़ गई, क्या उसका फायदा उन्हें मिला। क्या आरक्षण की यही कल्पना है।” सुमित्रा महाजन ने आगे कहा, ”मैं बोलने में डगमगाती नहीं हूं। क्योंकि मेरे विचार पक्के हैं। डॉ अंबेडकर ने भी कहा था वह दोहरा रही हूं। हमें आरक्षण केवल 10 साल के लिए चाहिए।” उनकी इस बात पर सभा में बैठे लोगों ने ताली बजाई तो सुमित्रा महाजन ने इस पर नाराजगी जताई।

सुमित्रा महाजन ने आगे कहा, ”डॉ. अंबेडकर की कल्पना थी 10 साल बाद सामूहिक उत्थान की। उनकी कल्पना थी सामाजिक समरसता की। लेकिन मैंने क्या किया। कहीं श्रीजन सामूहिक रूप से चिंतन में हम कम पड़ गए। हर 10 साल में आरक्षण को आगे बढ़ाते गए। एक बार तो 20 साल आगे बढ़ाया गया। क्या है यह कल्पना क्या है। क्या केवल आरक्षण देने से देश का उद्धार हो जाएगा गांव गांव में सोच नहीं बदलनी चाहिए परिवर्तन नहीं आना चाहिए। यह भेद-भाव नहीं चलेगा।

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एक सामूहिक भोजन का उदाहरण देते हुए लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने कहा कि सामूहिक भोजन में सब को निमंत्रण देकर और जाति के आधार पर बैठाया जाएगा तो उस सामूहिक भोजन का कोई मतलब नहीं है। महाजन ने उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा लोकमंथन के उद्घाटन के मौके पर दिये गये भाषण का हवाला दिया जिन्होंने कहा था कि राष्ट्र सबसे पहले आना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘लोगों को जन गण और मन (लोग, समाज और मस्तिष्क) के बारे में सोचना चाहिए। लोगों को देश के इतिहास और साहित्य के बारे में जानना चाहिए।’’

महिलाओं के विषय में उन्होंने कहा, ‘‘महिलाओं के सम्मान का बड़ा महत्व है। महिलाएं समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा है और उनके बगैर समाज आगे नहीं बढ़ेगा।’’ हम कहते हैं कि जहां नारी है वहां देता है। नारियों की हम पूजा तो करते हैं लेकिन सम्मान नहीं करते। स्त्री जिंदगी रूपी रथ की सारथी है और पुरुष पराक्रम का प्रतीक। दोनों में समझ होगी तभी रथ चलेगा।

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