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पुरुषों से कहीं बेहतर अकादमिक प्रदर्शन कर सकती हैं महिलाएं, नहीं हैं किसी से पीछेः अध्ययन

सांख्यिकी की कक्षाओं में महिलाएं अपनी क्षमताओं के बारे में अधिक नकारात्मक दृष्टिकोण रखने के बावजूद पूरे सेमेस्टर में पुरुषों से कहीं बेहतर अकादमिक प्रदर्शन करती हैं। ‘जर्नल ऑफ स्टैटिस्टिक्स एंड डाटा साइंस एजुकेशन’ में प्रकाशित हमारा हालिया अध्ययन कुछ ऐसा ही बयां करता है। सांख्यिकी की विभिन्न कक्षाओं में शामिल सौ से अधिक छात्र-छात्राओं के अकादमिक प्रदर्शन से जुड़े डाटा के आधार पर मैंने और मेरे साथी ने एक सेमेस्टर के दौरान अंकों में दिखने वाले लैंगिक अंतर का विश्लेषण किया है। 

अध्ययन में प्रतिभागियों ने सेमेस्टर की शुरुआत और अंत में एक सर्वे में शामिल कुछ प्रश्नों के उत्तर भी दिए। इन प्रश्नों का मकसद सामान्य रूप से सांख्यिकी के शिक्षकों को लेकर छात्र-छात्राओं का डर, सांख्यिकी की उपयोगिता के बारे में उनके विचार, उनकी अपनी गणितीय क्षमता को लेकर उनकी धारणाएं, परीक्षा देने से जुड़ी उनकी चिंताएं, आंकड़ों की व्याख्या करने के मामले में उनकी बेचैनी और मदद मांगने में उनके डर का पता लगाना था।

परीक्षा में महिलाएं 10 फीसदी अंक आगे 

कुल मिलाकर हमने पाया कि जिन विद्यार्थियों की अपनी गणितीय क्षमता के बारे में अधिक नकारात्मक धारणाएं थीं, उनके सेमेस्टर के दौरान अंक भी कम आए थे। अध्ययन में सामने आया लैंगिक अंतर तो और भी दिलचस्प है। छात्र-छात्राओं ने सेमेस्टर की शुरुआत में ली गई परीक्षाओं में भले ही समान प्रदर्शन किया हो, लेकिन अंतिम परीक्षा में महिलाएं लगभग 10 फीसदी अधिक अंकों के साथ सेमेस्टर उत्तीर्ण करने में सफल रहीं। सेमेस्टर की शुरुआत में अपनी गणितीय क्षमता को लेकर पुरुषों से अधिक नकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाली महिलाओं के मामले में भी समान नतीजे देखने को मिले।

सेमेस्टर की शुरुआत में कक्षा में महिलाओं के पुरुषों के मुकाबले अपनी गणितीय क्षमताओं को कमतर आंकने, परीक्षा को लेकर चिंता जताने और आंकड़ों की व्याख्या करने में बेचैनी महसूस करने की दर ज्यादा थी। हालांकि, समय बीतने के साथ अपनी क्षमताओं को लेकर महिलाओं की धारणा में सुधार हुआ और सेमेस्टर के अंत तक यह पुरुषों के समान हो गई।

इस बीच, सेमेस्टर के दौरान सांख्यिकी के शिक्षकों से डर लगने या मदद मांगने में हिचकिचाहट महसूस होने की बात कहने वाले पुरुषों के प्रदर्शन में तेजी से गिरावट दर्ज की गई। सेमेस्टर के दौरान जिन पुरुषों के दृष्टिकोण में सुधार आया, उनका प्रदर्शन भी बेहतर हुआ। हालांकि, यह महिलाओं के प्रदर्शन में हुए सुधार जितना नहीं था।

क्या हैं मायने? 

विभिन्न अध्ययनों से पता चला है कि लड़के और लड़कियां कम उम्र से ही गणित को समान रूप से अच्छी तरह से सीखते हैं। हालांकि, गणित के किसी सवाल को हल करने के लिए लड़कियों को बुलाए जाने की संभावना कम होती है, भले ही उन्होंने लड़कों के समान संख्या में हाथ उठाया हो। इसके अलावा, कुछ शिक्षक अनजाने में लड़कियों के गणित के पेपर को लड़कों की तुलना में अधिक कठोर तरीके से जांचते हैं। माध्यमिक कक्षाओं तक लड़के-लड़कियों के गणित के अंकों में लैंगिक अंतर सामने आने लगता है।

ये कारक महिलाओं के गणितीय रूप से खुद को पुरुषों से कम काबिल आंकने की वजह बन सकते हैं। नतीजतन, महिलाओं के एसटीईएम-विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित-जैसे क्षेत्रों में करियर बनाने की संभावना घट जाती है। हमारे अध्ययन के नतीजे अन्य अध्ययनों के समान हैं। ये उस मान्यता को बल देते हैं कि एसटीईएम विषयों, खासकर सांख्यिकी में महिलाओं में पुरुषों के समान और यहां तक कि उनसे बेहतर प्रदर्शन करने की काबिलियत है। हमारा मानना है कि एसटीईएम विषयों में दाखिला लेने के बाद महिलाओं को शिक्षकों द्वारा अधिक प्रोत्साहित किए जाने पर उनके बेहतर प्रदर्शन करने की संभावना बढ़ सकती है।

क्या अभी भी ज्ञात नहीं? 

क्षमताओं को लेकर दृष्टिकोण में लैंगिक अंतर के कुछ कारण इस अध्ययन में सामने आए हैं। हालांकि, अभी भी बहुत कुछ है, जो हम नहीं जानते। मिसाल के तौर पर हमारे अध्ययन में समय बीतने के साथ महिलाओं के दृष्टिकोण में बदलाव क्यों आया? क्या अंकों में सुधार के साथ अपनी क्षमताओं को लेकर उनके आत्मविश्वास में वृद्धि इसकी वजह थी या फिर समय बीतने के साथ सांख्यिकी के शिक्षकों ने छात्राओं की क्षमताओं को लेकर उनके दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव लाया था?

सेमेस्टर के दौरान महिलाओं और पुरुषों के दृष्टिकोण में कैसे अंतर आया ? ऐसे ही कई अन्य सवालों के जवाब हासिल करने के लिए और अनुसंधान किए जाने की जरूरत है। खासतौर पर हम कक्षाओं और शिक्षकों से जुड़े उन कारकों का पता लगना चाहते हैं, जो छात्र-छात्राओं के दृष्टिकोण में सुधार कर उनके प्रदर्शन को और बेहतर बनाने में मददगार साबित हो सकते हैं।